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द्वितीयाध्यायः
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जीवोदय निष्पन्न तथा अजीवोदय निष्पन्न । जीवोदय निष्पन्न किसे कहते हैं? वह अनेक प्रकार का कहा गया है - नारकी, तिर्यच मनुष्य, देव, पृथ्वी कायिक से लगाकर त्रस काय तक, क्रोधकषाय वाले से लगाकर लोभ कषाय वाले तक, स्त्री वेद वाले, पुरुषवेद वाले, नपुंसक वेद वाले, कृष्णलेश्या वाले से लगाकर शुक्ललेश्या वाले तक, मिथ्यादृष्टि, अविरत, असंज्ञी, अज्ञानी, श्राहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारी और असिद्ध । इसको जीवोदय निष्पन्न कहते हैं। अजीवोदय निष्पन्न किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का होता है - औदारिक शरीर अथवा औदारिक शरीर के प्रयोग के परिणाम वाला द्रव्य, वैक्रियिक शरीर अथवा वैक्रियिकशरीर के प्रयोग के परिणाम वाला द्रव्य, इसी प्रकार आहारक शरीर, तेजस शरीर और कार्माण शरीर भी अजीवोदय निष्पन्न हैं। प्रयोग के परिणाम वाले वर्ण, गंध, रस और स्पर्श भी अजीवोदय निष्पन्न हैं । यह उदय निष्पन्न है । इस प्रकार औदयिक भाव का वर्णन किया गया ।
औपशमिक किसे कहते हैं ? वह दो प्रकार का कहा गया है - उपशम और उपशम निष्पन्न । उपशम किसे कहते हैं ? मोहनीय कर्म के उपशम (दबजाने) को उपशम कहते हैं। उपशम निष्पन्न किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का कहा गया है । उपशान्त क्रोध से लगाकर उपशान्त लोभ तक, उपशान्त राग, उपशान्त दोष (दुष), उपशान्त दर्शनमोहनीय, उपशान्त मोहनीय, उपशमिक सम्यक्त्वलब्धि, उपशमिक चारित्रलब्धि और उपशान्तकषाय छद्यस्थ वीतराग । इसको उपशम निष्पन्न कहते हैं। इस प्रकार उपशमिक भाव का वर्णन किया गया।
सायिक किसे कहते हैं ? वह दो प्रकार का होता है.- क्षायिक और क्षयनिष्पन्न । क्षायिक किसे कहते हैं ? आठों कर्म प्रकृतियों के क्षय को क्षायिक कहते हैं । क्षयनिष्पन्न किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का है - उत्पन्न हुए ज्ञान और दर्शन के धारक, अर्हन्तजिन, केवली, मतिज्ञानावरणीय को नष्ट करने वाले, श्रुतज्ञानावरणीय को नष्ट करने वाले, अवधिज्ञानावरणीय को नष्ट करने वाले, मनःपर्ययज्ञानावरणीय को नष्ट करने वाले, केवलज्ञानावरणीय को नष्ट करने वाले, केवलदर्शी, सर्वदर्शी; निद्रादर्शनावरणीय को नष्ट करने वाले, निद्रानिद्रा को नष्ट करने वाले, प्रचलादर्शनावरणीय को नष्ट करने वाले, प्रचलाप्रचला को नष्ट करने वाले, स्त्यानगृद्धि को नष्ट करने वाले, चक्षुदर्शनावरणीय को नष्ट करने वाले, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय को नष्ट करने वाले, केवल