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________________ तत्त्वार्थ भाषाकार के दो शब्द तन्वार्थसूत्र के सूत्रों की जैन आगम पाठों से तुलना करने वाले इस "तत्त्वार्थसूत्र जैनागमसमन्वय" ग्रन्थ को पाठकों के सम्मुख उपस्थित किया जाता है। पूज्य उपाध्याय जी महाराज का यह प्रयत्न अत्यन्त प्रशंसनीय है। क्योंकि आगम ग्रन्थों से तत्त्वार्थसूत्र के समन्वय करने का यह सौभाग्य सब से प्रथम आप को ही प्राप्त हुआ है। आशा है कि आप के इस प्रयत्न से स्थानक वासियों तथा श्वेताम्बरों में तत्त्वार्थसूत्र का अधिक परिशीलन और दिगाम्बरों में जैन भागमों के अध्ययन एवं स्वाध्याय का अच्छा प्रचार हो जावेगा। ___ इस ग्रन्थ में इस बात के लिये विशेष प्रयत्न किया गया है कि यह विद्यार्थियों और स्वाध्याय प्रेमी दोनों के लिये उपयोगी हो सके। अतएव इसको संस्कृत छाया में अत्यन्त सुगम सन्धियां ही दी गई हैं। प्रायः स्थल, बिना संधियों के ही रखे गये हैं। मल ग्रन्थ में ऊपर तत्वार्थसूत्र के सत्रों को देकर उनके नीचे प्राकृत आगम प्रमाण दिये गये हैं । उनके नीचे ग्न पाठों की संस्कृत छाया, फिर उनकी भाषा टीका और अन्त में आवश्यक स्थानों पर सूत्र और आगम पाठों का समन्वय करने वाली संगति दी गई है। जो भागम पाठ शीघ्रता के कारण मल ग्रन्थ में छपते समय नहीं दिये जा सके थे, उनको परिशिष्ट नं० १ में दिया गया है । परिशिष्ट नं० २ में मेरा लिखा हुआ, तत्वार्थ सूत्र भाषा है । इसमें तत्त्वार्थसूत्र के सूत्रों का अर्थ सरल हिन्दी भाषा में सत्रों के अंक दे २ कर इस प्रकार से लिखा गया है कि यह भी एक स्वतन्त्र ग्रंथ सा ही बन गया है । इसमें भाव खोलने वाले शब्द छोटे कोष्टक -()- में और वाक्य पूरे करने वाले शब्द बड़े कोष्टक -[]- में दिये गये हैं। परिशिष्ट नं०३ में दिगम्बर सूत्र पाठ और श्वेताम्बर सूत्रपाठों का अंतर दिखवाया गया है ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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