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________________ २४ ] तत्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : 'तदनन्तभागे मन:पर्ययस्य । ” १.२८. सव्वत्थोवा मणपज्जवणाणपज्जवा । श्रहिणाणपज्जवा अ छाया (6 तगुणा इत्यादि । भगवती सूत्र शत० ८ उद्देश २ सूत्र ३२३., सर्वस्तोकाः मनःपर्ययज्ञानपर्यवा: । अवधिज्ञानपर्यवा: अनन्तगुणा : इत्यादि । - भाषा टीका - मन:पर्यय ज्ञान की पर्याय सब से कम होती हैं । किन्तु अवधिज्ञान की पर्याय उससे अनन्त गुणी होती हैं । संगति - जिस द्रव्य को अवधिज्ञान जानता है । मन:पर्यय ज्ञान उससे भी अनन्त भाग सूक्ष्म पदार्थ को जानता है । छाया "" "" सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य । १.२९ अह सव्वदव्वपरिणाम तं समास चउव्विहं भावविण्णत्तिकरणमणंतं, सासयमप्पडिवाई एगविहं केवलं गाणं । नन्दि० सूत्र २२. अथ सर्वद्रव्यपरिणामभावविज्ञप्ति तत्समासतश्चतुर्विधं करणमनन्तं, शाश्वतमप्रतिपाती एकविधं केवलं ज्ञानम् । भाषा टीका - संक्षेप से वह चार प्रकार का होता है - केवल ज्ञान सब द्रव्यों के परिणाम और भावों को बतलाने का कारण है, अनन्त है, निरन्तर रहता है, अप्रतिपाती है अर्थात् इसको प्राप्त करके गिर नहीं सकते । इस प्रकार केवल ज्ञान एक प्रकार का होता है । संगति – सारांश यह है कि केवल ज्ञान सब द्रव्यों की सब पर्यायों को जानता है। -
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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