SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः ....... तत्थ दव्वओणं आभिणिबोहियणाणी आएसेणंसव्वाई दव्वाइं जाणइ न पासइ, खेत्तओणं आभिणिबोहियणाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ न पासइ, कालोणं आभिणिबोहियणाणी आएसेणं सव्वकालं जाणइ न पासइ, भावओणं आभिणिबोहियणाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ न पासइ । नन्दिसूत्र सूत्र ३७. से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खित्तो कालओ भावो । तत्थ दव्वओणं सुअणाणी उवउत्ते सव्वदवाइं नाणइ पासइ, खित्तओणं सुअणाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, कालोणं सुअणाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ पासइ, भावओणं सुअणाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ। नन्दिसूत्र सूत्र ५८. छाया- तत्र द्रव्यत: आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन सर्वाणि द्रव्याणि जानाति न पश्यति । क्षेत्रत : आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन सर्व क्षेत्रं जानाति न पश्यति । कालत : आभिनिबोधिक ज्ञानी आदेशेन सर्व कालं जानाति न पश्यति, भावतः आभिनिबोधिकज्ञानी आदेशेन सर्वाणि भावानि जानाति न पश्यति ।। अथ समासतश्चतुर्विध : प्रज्ञप्तस्तद्यथा - द्रव्यत: क्षेत्रतः कालत : भावतः। तत्र द्रव्यत : श्रुतज्ञानी उपयुक्त : सर्वव्याणि जानाति पश्यति, क्षेत्रत : श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्व क्षेत्रं जानाति पश्यति, कालतः श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्व कालं जानाति पश्यति, भावत: श्रुतज्ञानी उपयुक्त : सर्वाणि भावानि जानाति पश्यति । भाषा टीका-द्रव्य की अपेक्षा मतिज्ञान वाला आदेश से सब द्रब्यों को जानता है किन्तु देखता नहीं । क्षेत्र की अपेक्षा मतिज्ञान वाला आदेश से सब क्षेत्र को जानता
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy