SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छाया अणुभागफल विवागा | सव्वेसिं च कम्माणं । - अष्टमोऽध्याय: छाया स यथानाम | जाती है। अनुभागफल विपाकाः । सर्वषां च कर्मणाम् । भाषा टीका प्रज्ञापना पद २३, उ०२. उत्तराध्ययन अ० २३, गाथा १७. - भाषा टीका • सब कर्मों का अनुभाग उन २ कर्मों के फल का विपाक है । अर्थात् उन में जो फलदान शक्तिका पड़जाना और उदय में आकर अनुभव होने लगना है सो अनुभव वा अनुभाग है । उदीरिया वेड्या य निजिन्ना । ८, २२. समवायांग, विपाकश्रुत वर्णन । ततश्च निर्जरा । [ १९७ ८, २३. व्याख्या प्रज्ञप्ति शत० १, उ० १, सू० ११. उदीरिताः वेदिताश्च निजीर्णाः । ― - उस अनुभव के पश्चात् उन कर्मों की फल देकर निर्जरा हो - संगति – इन सब सूत्रों के अक्षर आगमवाक्यों से प्रायः मिलते हैं । - अब प्रदेश बन्ध का वर्णन किया जाता है नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकतेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः । 5,28 सव्वेसिं चैव कम्माणं पएसग्गमणन्तगं । गण्ठियसत्ताईयं, अन्तो सिद्धाण आउयं ॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy