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________________ अष्टमोऽध्यायः छाया- उदधिसदृङनाम्ना, सप्ततिः कोटाकोटयः । मोहनीयस्योत्कृष्टा, अन्तर्मुहुर्त जघन्यका ॥ भाषा टीका-मोहनीय कमे को उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त होती है। विंशतिर्नामगोत्रयोः। ८, १६. उदहीसरिसनामाण, वीसई कोडिकोडीओ। नामगोताणं उक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ उत्तराध्ययन अध्य० २३ गाया . छाया- उदधिसदृङ्नाम्नां, विंशतिः कोटाकोटयः । नामगोत्रयोरुत्कृष्टा, अन्तर्मुहुर्त जघन्यका ॥ भाषा टीका- नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति वीस कोडाकोड़ी सागर की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त होती है। त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः। ८. १७. तेतीस सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिइ उ आउकम्मस्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ____उत्तराभ्ययन प०१३, गा . छाया- त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा, उत्कर्षेण व्याख्याता । स्थितिस्त्वायुः कर्मणः, अन्तर्मुहुर्त जघन्यका ॥ भाषा टोका-आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेंतीस सागर की है और अपन्य स्थिति अन्तर्मुहुत होती है। ___ अपरा द्वादशमुहुर्ता वेदनीयस्य । ८,१६.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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