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________________ १७४ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : ७, ३४. भाषा टीका-श्रमणोपासक को समायिक व्रत के पांच अतिचार जानने चाहिये, किन्तु उनपर आचरण न करना चाहिये । वह यह हैं १. मनो दुष्प्रणिधान - सामायिक के समय मनको अन्यथा चलायमान करना । २. धाग्दुष्प्रणिधान - सामायिक के समय वचन को चलायमान करना । ३. कायदुष्प्रणिधान - सामायिक के समय काय को चलायमान करना । ४. स्मृति अकरण - सामायिक के समय आदि को भूल जाना। ५. अनवस्थितकरण- समायिक के काल और उसकी क्रिया का निश्चित रूप से पालन न करना। अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि।। पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समारियव्वा, तं जहा-अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिजाखंथारे, अप्पमजियदुप्पमजियसिज्जासंथारे, अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहिय उच्चार पासवणभूमी, अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमी, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया । छाया- प्रोषधोपवासस्य श्रमणोपासकेन पश्चातिचारा ज्ञातव्या, न समा चरितव्याः, तद्यथा - अप्रत्युपेक्षितदुष्प्रत्युपेक्षितशय्यासंस्तारः, अप्रमार्जितदुष्पमार्जितशय्यासंस्तारकः अप्रत्युपेक्षितदुष्प्रत्युपेक्षितोचारप्रस्रवणभूमिः, अप्रमार्जितदुधमार्जितोचारप्रस्रवणभूमिः, पोष धापवासस्य सम्यक अननुपालनता । भाषा टीका -प्राषधापवास के पांच अतिचार श्रमणोपासक को जानने चाहिये, किन्तु उनका आचरण नहीं करना चाहिये । वह यह हैं १. अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्युपेक्षित शय्यासंस्तारक - प्रोषधोपवास किए हुये स्थान उपा० अध्या.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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