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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
७, ३४.
भाषा टीका-श्रमणोपासक को समायिक व्रत के पांच अतिचार जानने चाहिये, किन्तु उनपर आचरण न करना चाहिये । वह यह हैं
१. मनो दुष्प्रणिधान - सामायिक के समय मनको अन्यथा चलायमान करना । २. धाग्दुष्प्रणिधान - सामायिक के समय वचन को चलायमान करना । ३. कायदुष्प्रणिधान - सामायिक के समय काय को चलायमान करना । ४. स्मृति अकरण - सामायिक के समय आदि को भूल जाना।
५. अनवस्थितकरण- समायिक के काल और उसकी क्रिया का निश्चित रूप से पालन न करना।
अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि।।
पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समारियव्वा, तं जहा-अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिजाखंथारे, अप्पमजियदुप्पमजियसिज्जासंथारे, अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहिय उच्चार पासवणभूमी, अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमी, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया । छाया- प्रोषधोपवासस्य श्रमणोपासकेन पश्चातिचारा ज्ञातव्या, न समा
चरितव्याः, तद्यथा - अप्रत्युपेक्षितदुष्प्रत्युपेक्षितशय्यासंस्तारः, अप्रमार्जितदुष्पमार्जितशय्यासंस्तारकः अप्रत्युपेक्षितदुष्प्रत्युपेक्षितोचारप्रस्रवणभूमिः, अप्रमार्जितदुधमार्जितोचारप्रस्रवणभूमिः, पोष
धापवासस्य सम्यक अननुपालनता । भाषा टीका -प्राषधापवास के पांच अतिचार श्रमणोपासक को जानने चाहिये, किन्तु उनका आचरण नहीं करना चाहिये । वह यह हैं
१. अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्युपेक्षित शय्यासंस्तारक - प्रोषधोपवास किए हुये स्थान
उपा० अध्या.