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________________ १७० ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : भाषा टीका - स्वदारसंतोष व्रत के भी पांच अतिचार जानने चाहिये । उनको कभी म करे । वह यह हैं १. इत्वरिकापरिग्रहीतागमन-दूसरे की विवाह की हुई कुलटा स्त्री से गमन करना । अथवा छोटी अवस्था में विवाह की हुई किन्तु संभोग के योग्य अवस्था न होने पर भी अपनी स्त्री से विषय करना। २. अपरिग्रहीतागमन-अविवाहिता कुमारी अथवा वेश्या आदि के साथ गमन करना अथवा किसी कन्या के साथ अपनी मंगनी होजाने पर उसके एकान्त में मिलने पर उसे अपने भावी स्त्री जानकर विवाह के पूर्व ही उससे भोग करना। ३. अनंग क्रीडा-काम के अंगों से भिन्न अंगों में क्रीड़ा करना । ४. पर विवाह करण-कुमारी कन्या का विवाह पुण्य समझ कर या अन्य कारण से दूसरे का विवाह करना । अथवा दूसरे को मंगनी तुड़वा कर अपना विवाह करना। __५. काम भोग तीव्राभिलाषा–काम भोग सेवन की तीव्र अभिलाषा रखना । क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः। ७, २९. इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा । तं जहा-धणधन्नपमाणाइक्कमे खेतवत्युप्पमाणाइक्कमे हिरण्णसुवरणपरिमाणाइक्कमे दुपयचउप्पयपरिमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे। उपासक० अध्याय १. छाया- इच्छापरिमाणस्य श्रमणोपासकेन पञ्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न समाचरितव्याः, तद्यथा-धनधान्यप्रमाणातिक्रमः, क्षेत्रवास्तुप्रमापतिक्रमः, हिरण्यसुवर्णपरिमाणातिक्रमः, द्विपदचतुष्पदपरिमाणातिक्रमः, कुप्यममाणातिक्रमः।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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