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________________ तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : छाया आगरधर्मोऽणुव्रतादिः इत्यादि । भाषा टीका – अणुव्रत आदि का धारण करना आगार धर्म कहलाता 1 दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागव्रत - १६६ ] सम्पन्नश्च । ७, २१. श्रागरधम्मं दुवालसविहं माइक्खड़, तं जहा - पंच भरणुव्वयाइं तिरिण गुणवयाइं चत्तारि सिक्खावयाइं । तिरिण गुणव्वाई, तं जहा - अणत्थदंडवेरमणं दिसिव्वयं, उपभोगपरिभोगपरिमाणं । चत्तारि सिक्खावयाई तंजहा - सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासे अतिहिसंविभागे । पपातिकम् श्रीवीरदेशना सूत्र ५७. छाया-- गारधर्मः द्वादशविधः आचक्षते, तद्यथा - पञ्चाणुत्रतानि त्रीणि गुणवतानि चत्वारि शिक्षाव्रतानि । श्रोणि गुणवतानि तद्यथा- श्रनर्थदंडवेरमणं, दिग्वतं, उपभोगपरिभोगपरिमाणं । चत्वारि शिक्षावतानि - तद्यथा - सामायिकं देशावकाशिकं, प्रोषधोपवासः, अतिथिसंविभागश्च । भाषा टीका – आगार धर्म बारह प्रकार का कहा जाता है - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत । तीन गुणव्रत यह हैं - अनर्थदंड त्याग, दिग्व्रत और उपभोग परिभोग परिमाण । चार शिक्षाव्रत यह हैं - सामायिक, देशावकाशिक, प्रोषधोपवास और अतिथि संविभाग |
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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