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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
दृनतया परपरितापनतया बहूनां प्राणिनां यावत् सत्त्वानां दुःखनतया शोचनतया यावत् परितापनतया एवं खुल गौतम !
जीवानां असातावेदनीयकर्माणि क्रियन्ते । भाषा टीका - हे गौतम ! दूसरे को दुःख देने से, दूसरे को शोक उत्पन्न कराने से, दूसरे को भुराने से, दूसरे को रुलाने से, दूसरे को पीटने से, दूसरे को परिताप देने से, बहुत से प्राणियों और जीवों को दुःख देने से, शोक उत्पन्न कराने आदि परिताप देने से जीव असाता वेदनीय कर्मो का आसूव करते हैं ।
भूतव्रत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः शान्तिः शौचमिति सडेदस्य ।
पाणाणुकंपाए भूयाणुकंपाए जीवाणुकंपाए सत्ताणुकंपाए बहणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपिट्टणयाए अपरियावणयाए एवं खलु गोरमा! जीवाणं सायावेयणिज्जा कम्मा किजंति ।
व्याख्या प्रज्ञप्ति शतक ७ उ० ६ सूत्र २८६. छाया- प्राणानुकम्पनतया भूतानुकम्पनतया जीवानुकम्पनतया सत्त्वानु
कम्पनतया बहूनां प्राणिनां यावत् सत्वानां अदुःखनतया अशोचनतया अझूरणतया अतपणतया अपिट्टनतया अपरितापन
तया एवं खलु गौतम ! जोवानां सातावेदनीयकर्माणि क्रियन्ते । भाषा टीका - हे गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, प्राणियों पर दया करने से, जीवों पर दया करने से, सत्त्वों पर दया करने से, बहुत से प्राणियों को दुःख न देने से, शोक न कराने से, न झुराने से, न रुलाने से, न पीटने से, परिताप न देने से जीव साता वेदनीय कर्मों का पासूव करते हैं।
केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ।
६, १३.