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________________ १३२ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः प्रौदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकामणश्रोत्रिंद्रियचक्षरिन्द्रियघाणेन्द्रिपजिव्हेन्द्रियस्पर्शनेन्द्रियमनःयोगवचनयोगकाययोगाऽनामाणानां च ग्रहणं प्रवर्तते । ग्रहणलक्षणः पुद्गलास्तिकायः । भाषा टीका-धर्मास्तिकाय जीवों के गमन, आगमन, भाषा, उन्मेष, मनोयोग, पचनयोग, और काययोग [ के लिये निमित्त होता है ] । इनके अतिरिक्त और जो भी इस प्रकार के चल भाव हैं वह सब धर्मास्तिकाय के होने पर ही होते हैं, क्योंकि धर्मास्तिकाय गति लक्षण वाला है। प्रश्न -अधर्मास्तिकाय जीवों के लिये क्या करता है ? उत्तर-गौतम ! अधर्मास्तिकाय जीवों के लिये ठहरना, बैठना, त्वग्वर्तन (करवट बदलना), और मन की एकाग्रता करता है । इनके अतिरिक्त और जो भी इस प्रकार के स्थिर भाव हैं वह अधर्मास्तिकाय के होने पर ही होते हैं, क्योंकि अधर्मास्तिकाय स्थिति मामण वाला है। प्रश्न-भगवम् ! आकाशास्तिकाय जीव और पुद्गलों के लिये क्या करता है ? उत्तर-गौतम ! आकाश द्रव्य जीवद्रव्यों और अजीवद्रव्यों को स्थान देने वाला है। यह एक से भी भरा हुआ (पूर्ण) है, दो से भी भरा हुआ है, एक करोड़ और अरब से भी भरा हुआ है तथा एक खरब जीव तथा पुद्गल स्कन्धों से भी भरा हुआ है। क्यों किभाकाशास्तिकाय अवगाहना लक्षण वाला है।। प्रश्न - भगवन् ! जीवास्तिकाय जीवों के लिये क्या करता है। उत्तर-गौतम ! जीवास्तिकाय अनन्त मतिज्ञानपर्याय वाले जीवों के, इसी प्रकार भुतज्ञान पर्याय वाले जीवों के, अवधि ज्ञान पर्याय वाले जीवों के, मनःपर्यय ज्ञान पर्याय वाले जीवों के, केवल ज्ञान पर्याय बाले जीवों के, मतित्रज्ञान पर्याय वाले जीवों के, श्रुत अज्ञान पर्याय वाले जीवों के, विभंगज्ञान पर्याय वाले जीवों के, चक्षुदर्शन पर्याय वाले जीवों के, अचक्षुदर्शन पर्याय वाले जीवों के, अवधि दर्शन पर्याय वाले जीवों के और केवल दर्शन पर्याय वाले जीवों के उपयोग को प्राप्त होता है । ज्ञान, दर्शन, सुख और दुःख के बारा भी [जीव उपकार करता है ] जीव का लक्षण उपयोग है। प्रश्न -पुदगलास्तिकाय क्या करता है ?
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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