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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
भाषा टीका - धर्म और अधर्म नाम के दो द्रव्य सम्पूर्ण लोक भर में व्याप्त हैं। आकाश लोक भर में है और उसके बाहिर अलोक में भी सर्वत्र है । व्यवहार काल समय क्षेत्र में है। एक प्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम्।
५, १४. एगपएसो गाढा'.."संखिजपएसोगाढा... असंविजपएसो गाढा।
प्रज्ञापना पञ्चम पर्यायपद अजीवपर्यवाधिकार। छाया- एकप्रदेशावगाहा........संख्येयप्रदेशावगाहाः ........ असंख्येय
प्रदेशावगाहाः। भाषा टीका -पुद्गलों के स्कन्ध [अपने २ परिमाण की अपेक्षा] आकाश के एक प्रदेश में भी हैं, संख्यात प्रदेशों में भी हैं और असंख्यात प्रदेशों को भी घेरे हुए हैं।
असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ।
लोअस्स असंखेजइभागे।
प्रज्ञापना पद २ जीवस्थानाधिकार । छाया- लोकस्य असंख्येय भागे (जीवानाम्) भाषा टीका - जीवों का अवगाह लोक के असंख्यातवें भाग में है।
प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत्। दीवं व...''जीवेवि जं जारिसयं पुव्वकम्मनिबद्धं बोदिं णिवत्तेइ तं असंखेजेहिं जीवपदेसेहि सचित्तं करेइ खुड्डियं वा महालियं वा।
राजप्रश्नीय सूत्र सूत्र ७४.