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________________ १२६ ] तत्त्वार्थसूत्र जैनाऽऽगम समन्वय : छाया - आकाशास्तिकायः प्रदेशापेक्षयाऽनन्तगुणः । भाषा टीका - प्रदेशों की अपेक्षा आकाश अस्तिकाय अनन्त गुणा है, अर्थात काश द्रव्य के अनंत प्रदेश होते हैं । संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् । नाणोः । ...... ५, १०. ५, ११. रूवी जीवदव्वाणं भंते! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता तं जहा - "खंधा, खंधदेसा, धप्पसा, परमाणुपोग्गला, 'अणंता परमाणुपुग्गला, अांता दुपएसिया खंधा जाव अणंता दसपएसिया खंधा अता संखिजपएसिया खंधा. अांता असंखिजपएसिया खंधा, अांता अतपरसिया धा । प्रज्ञापना ५ वां पद छाया - रूपिण: जीवद्रव्याणि भगवन् ! कतिविधानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! चतुर्विधानि प्रज्ञप्तानि । तद्यथा - स्कन्धाः, स्कन्धदेशाः, स्कन्धप्रदेशाः, परमाणुपुद्गलाः । ..अनन्ताः परमाणुपुद्गलाः, अनन्ताः द्विपदेशिकाः स्कन्धाः यावत् अनन्ताः दशप्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनन्ता संख्यातप्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनंताः असंख्यात प्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनन्ताः अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धा । ↑ प्रश्न - भगवन् ! रूपी अजीव द्रव्य कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर - गौतम ! चार प्रकार के होते हैं – स्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु पुद्गल । परमाणु पुद्गल अनन्त होते हैं। दो प्रदेश वाले स्कन्धों से लगाकर दश प्रदेश
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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