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इसके विरुद्ध ऊपर २ के देवों की गति कम होती जाती है। अर्थात् जितने २ ऊपर जाइये देव कम चलते हैं। प्रवेयकों के अहमिन्द्र तो अपने स्थान से कहीं भी नहीं जाते । शरीर भी उपर २ छोटा होता जाता है, परिग्रह भी ऊपर २ कम रखते जाते हैं, और अभिमान भी ऊपर २ कम होता जाता है ।
पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ।
४, २२
सोहम्मीसाणदेवाणं कति लेस्साओ पन्नताओ ? गोयमा ! एगा तेऊलेस्सा पण्णत्ता । सगं कुमारमाहिंदेसु एगा पम्हलेस्सा एवं बंभलोगे वि पम्हा । सेसेसु एक्का सुक्कलेस्सा श्रणुत्तरोववातियाणं एक्का परमसुक्कलेस्सा ।
छाया
जीवाभिगम० प्रतिपत्ति ३ उद्दे० १ सूत्र २१४. प्रज्ञापना पद १७ उद्दे० १ लेश्याधिकार ।
सौधर्मैशानदेवानां कतिलेश्याः मज्ञप्ताः १ गौतम ! एका तेजोलेश्या प्रज्ञप्ता । सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः एका पद्मलेश्या एवं ब्रह्मलोकेऽपि पद्मलेश्या । शेषेषु एका शुक्ललेश्या अनुत्तरोपपातिकानामेका परमशुक्रलेश्या ।
प्रश्न - सौधर्म और ईशान स्वर्ग वालों के कितनी लेश्या होती हैं ?
उत्तर
- गौतम ! उनके केवल एक पीत लेश्या (तेजोलेश्या) ही होती है।
सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में अकेली पद्म लेश्या होती है। ब्रह्मलोक में भी पद्मलेश्या होती है । शेष स्वर्गों में केवल शुक्ल लेश्या ही होती है। अनुत्तरों में उत्पन्न हुआ के परम शुक्ल लेश्या होती है ।
संगति - आगम के इस वाक्य का दिगम्बरों से थोडा मतभेद है । उनके लेश्या क्रम के अनुसार सौधर्म ईशान में पीत लेश्या; सानत्कुमार और माहेन्द्र में पीतपद्म दोनों; ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांत और कापिष्ट में पद्मलेश्या; शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार में पद्म