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________________ Pages : [ १०६ इसके विरुद्ध ऊपर २ के देवों की गति कम होती जाती है। अर्थात् जितने २ ऊपर जाइये देव कम चलते हैं। प्रवेयकों के अहमिन्द्र तो अपने स्थान से कहीं भी नहीं जाते । शरीर भी उपर २ छोटा होता जाता है, परिग्रह भी ऊपर २ कम रखते जाते हैं, और अभिमान भी ऊपर २ कम होता जाता है । पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु । ४, २२ सोहम्मीसाणदेवाणं कति लेस्साओ पन्नताओ ? गोयमा ! एगा तेऊलेस्सा पण्णत्ता । सगं कुमारमाहिंदेसु एगा पम्हलेस्सा एवं बंभलोगे वि पम्हा । सेसेसु एक्का सुक्कलेस्सा श्रणुत्तरोववातियाणं एक्का परमसुक्कलेस्सा । छाया जीवाभिगम० प्रतिपत्ति ३ उद्दे० १ सूत्र २१४. प्रज्ञापना पद १७ उद्दे० १ लेश्याधिकार । सौधर्मैशानदेवानां कतिलेश्याः मज्ञप्ताः १ गौतम ! एका तेजोलेश्या प्रज्ञप्ता । सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः एका पद्मलेश्या एवं ब्रह्मलोकेऽपि पद्मलेश्या । शेषेषु एका शुक्ललेश्या अनुत्तरोपपातिकानामेका परमशुक्रलेश्या । प्रश्न - सौधर्म और ईशान स्वर्ग वालों के कितनी लेश्या होती हैं ? उत्तर - गौतम ! उनके केवल एक पीत लेश्या (तेजोलेश्या) ही होती है। सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में अकेली पद्म लेश्या होती है। ब्रह्मलोक में भी पद्मलेश्या होती है । शेष स्वर्गों में केवल शुक्ल लेश्या ही होती है। अनुत्तरों में उत्पन्न हुआ के परम शुक्ल लेश्या होती है । संगति - आगम के इस वाक्य का दिगम्बरों से थोडा मतभेद है । उनके लेश्या क्रम के अनुसार सौधर्म ईशान में पीत लेश्या; सानत्कुमार और माहेन्द्र में पीतपद्म दोनों; ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांत और कापिष्ट में पद्मलेश्या; शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार में पद्म
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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