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________________ १०६ ] तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च । ४, १७ वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- कप्पोपवण्णगा य कप्पाईया य ॥ प्रज्ञापना प्रथम पद सूत्र ५०. छाया वैमानिकाः द्विविधा: प्रज्ञप्तास्तद्यथा- कल्पोपपन्नकाश्च कल्पातीताश्च । भाषा टीका - वैमानिक दो प्रकार के होते हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत । उपर्युपरि । ४, १८ ईसायरस कप्पस्स उप्पिं सपक्खि इत्यादि । प्रज्ञापना पद २ वैमानिकदेवाधिकार । छाया ईशानस्य कल्पस्य उपरि सपक्षं इत्यादि भाषा टीका - ईशान कल्प के ऊपर २ बाकी सब रचना है । सौधर्मैशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्टशुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च । ४, १९ सोहम्म ईसाण सणकुमार माहिंद बंभलोय लंतग महासुक्क सहस्सार आणय पाणय आरण अन्य हेट्ठिमगेवेज्जग मज्झिमगेवेग उपरिमगेवेज्भग विजय वेजयंत जयंत अपराजिय सव्वट्टसिद्धदेवाय । प्रज्ञापना पद ६, अनुयोगद्धार सू० १०३ औपपातिक सिद्धाधिकार ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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