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________________ १२ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : पपणत्ता; तं जहा-पंचहिं भरहेहिं पंचहि एरवएहिं पंचहिं महाविदेहेहिं । से किं तं अकम्मभूमगा ? अकम्मभूमगा तीसई विहा पएणत्ता, तं जहा-"पंचहि हेमवएहि पंचहि हरिवासेहिं पंचहिं रम्मगवासेहिं, पंचहिं एरण्णवएहिं, पंचहिं देवकुरुहि, पंचहिं उत्तरकुरुहिं । सेत्तं अकम्मभूमगा । प्रज्ञापना पद १ मनुष्याधिकार सूत्र ३२ छाया- अथ किं तत् कर्मभूमयः ? कर्मभूमयः पञ्चदशविधाः प्रज्ञप्ताः, तपथा-'पश्चभिः भरतैः पञ्चभिः ऐरावतैः पञ्चभिः महाविदेहै:" अथ किं तत् अकर्मभूमयः १ अकर्मभूमयः त्रिंशद्विधाः प्रज्ञप्ताः । तद्यथा-पञ्चभिः हेमवतैः, पञ्चभिः हरिवः पञ्चभिः रम्यग्वषैः पञ्चभिः हैरण्यवतैः पञ्चभिः देवकुरुभिः पञ्चभिरुत्तरकुरुभिः । सोऽयमकर्मभूमयः। प्रश्न- कर्म भूमि कौनसी हैं ? उत्तर-धर्म भूमि पन्द्रह कही गई हैं। (अढ़ाई द्वीप के) पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच महाविदेह । प्रश्न-अकर्म भूमि अथवा भोगभूमि कौन सी हैं ? उत्तर-भोगभूमि तीस होती हैं-पांच हैमवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक वर्ष, पांच हैरण्यवत, पांच देवकुरु और पांच उत्तर कुरु । यह सब भोग भूमियां हैं। संगति-यहां सूत्र और आगम वाक्य में कोई अन्तर नहीं है। आगम वाक्य में नियमानुसार थोड़ा विशेष कथन है। नृस्थिती पराध्वरे त्रिपल्योपमान्तर्महुतें । ३, ३८.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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