SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६] तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : त्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् । ताभ्यामपरा भूमियो ऽवस्थिताः । ३, २८. ३, २७. जंबुद्दीवे दीवे दोसु कुरासु मणुप्रासया सुसमसुसममुत्तमिडिंट पत्ता पच्चरणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा- देवकुराए चेव, उत्तरकुराए चैव ॥ १४॥ जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुयासया सुसममुत्तमिडिंढ पत्ता पच्चरणुब्भवमारणा विहरंति, तं जहा - हरिवासे चेव रम्मगवासे चेव ।। १५ ।। जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुयासया सुसमदुसममुत्तममिड्ढि पत्ता पच्चरणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा - हेमवए चेव एरन्नव चेव ॥ १६ ॥ जंबुद्दीवे दीवे दो खित्तेसु मरण्यासया दुसमसुसममुत्तममिडिंड पत्ता पच्चरणुभवमाणा विहरंति, तं जहा- पुव्वविदेहे चेव वरविदेहे चेव ॥ १७ ॥ जंबूदीवे दीवे दोसु वासेसु मरणया छव्विहं पि कालं पच्चगुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा -भरहे चेव एरवए चैव ॥ १८ ॥ स्थानांग स्थान २ सूत्र ८६. जंबूदीवे मंदरस्स पव्वस्स पुरच्छिम पञ्चत्थिमेणवि, वत्थि ओसप्पिणी नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्टिए णं तत्थ काले पन्नत्ते । व्याख्या प्रज्ञप्ति शतक ५ उद्देश्य १ सूत्र १७८
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy