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________________ कहते हैं कि अगर सामने हाथी आता हो तो हाथीके नीचे आकर मर जाना अच्छा मगर अपने बचावके लिये भी जैन मन्दिरमें जाना नहीं अच्छा, मैं ऐसा कहना नहीं चाहता कि लोग एकदम अपने धमको छोड कर जैन बन जावे अथवा जैन धर्मको बगैरे विचार उत्तम कह देवें मेरा तो इतनाही कहना है कि दूसरे लोग अपने शास्त्रोंकी बाबतोंसे तथा जैन शास्त्रोंकी बाबतोंसे पूर्ण वाकिफ होकर समतारुप त्राजुसे तोल कर धर्मको स्वीकारें और पाये हुए इस मनुष्य जन्मको सफल करें क्योंकि जन्मकी सफलता एशो अशरतमें नहीं है किन्तु सच्चे धमको हासिल करने में है असल धर्मांजीवनको जिसने हासिल किया वह जन्म मरणकी धारासे बचकर अनंत सुखका स्थान मुक्ति पदको प्राप्त करता है. और विषयी जन नरकोमें रूलता है, रसलिये मनुष्य मात्रका फर्ज हैकि धार्मिक जीवन बनावे, मगर गोपालकी तरह अपने ही शास्त्रकारों पर विश्वासमें फंसकर अन्य शास्त्रकारोंकी तरफ दृष्टि भी न देवे और देवे तो व्युद् ग्राहित होकर देवे और मेरा सोही सच्चा इस सिद्धांत को पकड कर मिथ्या धर्मसे अपने जीवन को धार्मिक जीवन मान लेवे तो ठीक नहीं, लो अब टाइम बहुत हो गया है इस लिये इस विषयको यहां ही रखते हैं.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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