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________________ (५६) इस उपर लिखे हुए श्लोकसे यह भी सिद्ध हो गया कि महादेवजीके यजनमें सुरा-मदिरा और मांस भी काम आते थे. शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय २० वें में लिखा है किजो ब्राह्मणोंको उपानत् और खडाउं देता है वह अश्व पर चढ़ कर सुखसे यमके मागको जाता है ॥ ४ ॥ छत्र दानसे छत्रवालोंके समान चलते हैं, शिविकाका दानसे रथ पर चढ कर सुखसे मार्गमें जाना होता है ॥५॥ शय्या आसनके प्रदानसे अवश्य सुखपूर्वक जाना होता है, आराम और छायाके वृक्ष लगानेवाले वृक्षोंकी छायामें जाते हैं ॥ ६ ॥ गौदान करनेवाले सब कामनासे संपूर्ण होकर मार्गमें गमन करतें हैं ॥११॥ जो अन्न पानका दान करते हैं वह तृप्त होकर उस मार्गमें गमन करते हैं, पाद शौच प्रदान करनेसे शीतल मार्गमें जातें हैं ॥ १२ ॥ जो चरणोंमे तेल मलता हैं वह अश्व पृष्ठ पर चढ कर चला जाता है, पाद शौच अभ्यंग दीप अन्न वासस्थान ॥ १३ ॥ हे व्यासजी ! जिन्होंने इतनी वस्तुओंका दान किया है वे यमराजाके वहां नहीं जातें हैं, सुवर्णे रत्नके दानसे बडे कठीन स्थानोंको तर जाते है ॥ १४ ॥ चाँदी और बैलके दान करनेसे प्राणी यानद्वारा गमन करता है, पृथ्वी दान करनेवाला सब कामनासे समृद्ध होकर जाता है ॥ १५ ॥ इत्यादि और भी अनेक दान करनेसे पाणी सुखसे यमालयको जातें हैं, वे मनुष्य सदा ही स्वर्गमें अनेक भोगोंको भोगते हैं इसी अध्यायके बीचके नीचे लिखे हुए श्लोकोंके देखनेसे अपने तथा अपनी संतानके सुखसे निर्वाह करनेके
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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