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________________ ( ५१ ) अगर कहा जाय कि उन दैत्योंने देवता आदिको दुःख दिया इस वास्ते बाल बच्चां और स्त्रीयों सहित उनके नगरोंको जला दिया, तो यह भी बात युक्ति युक्त नहीं है, कारण कि सर्वशक्तिवाले शिवजीको त्योंकी बुद्धिको सुधार देना चाहिये था, अगर ऐसा करने में शिव असमर्थ था और उसको इस अयुक्त कर्मको जरुरो करना ही था तो बिचारी स्त्रीयोंको तथा निर्दोष बच्चों को तो बचा लेना था अगर कहा जावे कि सर्पके बच्चे भी सर्प हो ते हैं इनको बचाकर क्या करनाथा तो फिर ऐसेको महादे जीने उत्पन्न ही क्यों किये ?, तथा राजालोक भी इन्साफसे जो गुनाह करते हैं उनको ही सजा - शिक्षा देते हैं अन्यको नहीं, अतः महादेवजीका बालबच्चां सहित त्रिपुरका जलाना नितांत अन्याय है, और ब्रह्माजीने उन दैत्योंको वरदान दिया उस वख्त क्यों नहीं विचार किया कि मै इन दैत्यों को ऐसा वरदान देता हूं, मगर ये दैत्य मेरे इस दिये हुए वरदानसे बडे जबरदस्त होकर देवतादिकों को बडी ही तकलीफ देंगे, और फिर पीडित हुए देवता महादेवजीसे पूकार करेंगे तब शिवजी बालबच्चां सहित त्रिपुरको जला देंगे इस महापापका भागी मैभी होउंगा, वास्ते ब्रह्माजी भी अल्पज्ञ सिद्ध हुए, ऐसे अल्पज्ञ और अन्याय करनेवालोंकी कथा सुननेसे कल्याण कैसे हो सकता है ?, और ऐसे देवोंकी पूजा और स्तुति धर्मके लेश को भी उत्पन्न नहीं कर सकती ऐसा कोई कहे तो इसमें द्वेषोक्ति क्या है ?, शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय ४-५ और ६ वें में देखो .
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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