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________________ (४१) पान किया, और बडा गरिव किया ॥ २२ ॥ उसकी आंते निकाल कर कंठमे डाल ली, इस प्रकार देवताओंके देखते देखते भगवान्ने उसे मार डाला ॥ २३ ॥ इत्यादि वर्णन है. __इस उपरके लेखको देखकर बुद्धिमान् जरूर विचार करेंगे कि परमात्मा पूर्ण दयालु होनेसे ऐसे निदयपनका काम कभी नहीं कर सकता, और जो नाखुनोस दूसरके हृदयोंको चीर कर उसका खून पी कर गर्जारव करता है वो परमात्मा कभी भी नहीं हो सकता. शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ६५ तथा ६६ में वर्णन है कि अर्जुन वनमें तपस्या पूर्वक शिवजीका आराधन करते थे, उनके पास दुर्योधनका भेजा हुआ 'मूक' नामा राक्षस सूअरका रुप धारके आने लगा तर अर्जुनने उसको दूरसे देखकर मनमें विचार किया कि यह कोइ मेरा शत्रु है और मुझे नुकसान करनेको यहां आता है, इसके देखनेसे मेरी संपूर्ण इंद्रियोंमें कलुषता प्राप्त होती है, इस वास्ते यह शत्रु मारने योग्य है इसमें संदेह नहीं, और मेरे गुरु व्यासजीने कह भी दिया है, कि जो दुःख देनेवाला है उसको अवश्य मार डालना और शोच-विचार कुछ न करना, इसीके निमित्त मैंने आयुध भी धारण किये हैं ऐसा विचार कर अर्जुनजी बाण चडा कर तैय्यार हुए, उसी समय शिवजी भी अपने गण सहित भिलका रुप धारण कर अर्जुनकी रक्षा तथा परीक्षा निमित्त वेलडीयांकी कोपीन बांध और केशोंको बांध शरीरमें श्वेतरेखा किये, धनुष्य बाण धारे और पीठ पर वाणोंकी तरकस धारण किये,
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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