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________________ ( ३७ ) ॥ १३ ॥ विद्दला विस्मिताश्चैव, समाजग्मुस्तथा पुनः । आलिलिङ्गस्तदा चान्याः, करं श्रुत्वा तथाऽपराः ॥ १२॥ परस्परं तु संहर्षाद्, गतं चैव द्विजन्मनाम् । एतस्मिन्नेव समये, ऋषिवर्याः समागमन् विरुद्धं वृत्तकं दृष्ट्वा दुःखिताः क्रोधमूर्च्छिताः । तदा ते दुःखसंप्राप्ताः कोऽयं कोऽयं तथाऽब्रुवन् ॥ १४॥ यदा च नोक्तवान् किञ्चित्, तदा ते परमर्षयः । ऊचुस्तं पुरुषं ते वै विरुद्धं क्रियते त्वया ॥ १५ ॥ " " तदीयं चैव लिङ्गं च, पततां पृथिवीतले । इत्युक्ते तु तदा तैस्तु, लिङ्गं च पतितं क्षणात् ॥ १६ ॥” : इत्यादि उल्लेख पढने से बुद्धिमानोंको मालूम होजायगा कि शिवजी कैसे महात्मा थे, और शिवपुराण के सुनने से जीवोंका कल्याण हो सकता है या अकल्याण ?. शिवपुराण ज्ञानसंहिता अध्याय ५० वे में बनारसी नगरीका अति महात्म्य लिखा है, उसमेंसे कुछ यहां लिखते हैं, महादेवजी अपनी औरत पार्वतीजी से कहते हैं कि यह वाराणसी मेरा सदा गुप्ततमक्षेत्र है, यह संपूर्ण प्राणीयोंकी मुक्तिका सदा कारण हैं ७ | २२ वे श्लोक २५ वें श्लोक तक देखो पापरहित हो या पाप सहित जो कर्म बंधन में प्राप्त हो कैसा भी हो जो इसतीर्थ में प्राणोंका त्याग करेगा वह अवश्य मुक्तिका भागी होगा || २२ || स्वेदज अंडज उद्भिज्ज जरायुज् कृमि दंशादि और पक्षी सर्पादि, वृक्ष गुल्मादि, और
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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