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________________ ( ३४ ) काट डाला, इत्यादि बयान है, इस पूर्वोक्त वयानसे सिद्ध हुआ कि शिवजी अज्ञानी थे, ज्ञानी होते तो स्वयमेव जान लेते कि यह द्वारपाल बलवान् है, नाहकमें क्यों मेरे गणका इसके साथ युद्ध करा कर नाश करता हूँ ?, और मैं भी इस के साथ युद्ध करके अपनी कम्मर तथा हाथ तुडवाता हूं ?, और महादेवजीने उस लडकेका सिर काट डाला इससे सिद्ध हुआ कि लडाइमें दूसरेकी हिंसा भी करते थे, ऐसे अज्ञानी और हिंसककी कथा सुननसे पापीओंका पाप कैसे दूर हो सकता है ?. तथा शिवपुराण ज्ञानसंहिता १३ वें तथा १४ वें अध्याय में बयान है कि महादेवजी कपट करके अपने रूपका गोपन करके पार्वती जहां पर तप कर रही थी वहां पर जटील वृद्धका रूप बना कर गए तब पार्वतीने उसका ऋषि महात्मा समज कर पूजन किया, बाद कपटसें जटीलरूपधारी शिवजीने पार्वती प्रश्न किया कि तुं किस प्रयोजनके लिये ऐसी तपश्चर्या करती है, तब सखीके मुखसें उत्तर दिलाया कि महादेवको पति बनानेके खातिर तपस्या करती है, फिर जटीलने कहा कि सखीने यह बात सत्य कही हैं या हाँसीसे कही है ? ऐसा पार्वती से प्रश्न किया- इत्यादि बयान है, अगर महादेवजी महात्मा होते तो कपटसे जटी का रूप धारके प्रश्न क्यों करते ?, अगर कहा जाय कि उसकी - पार्वतीकी परीक्षा करनेके वास्ते कपटसे जटीलका रूप धारके गये थे, ऐसे कहने से तो संपूर्ण अज्ञानी सिद्ध हुए, क्यों कि जो संपूर्ण ज्ञानी होता है सो सबके मनकी बातें अपने स्थान पर
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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