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________________ ( १ ) पाठकोंको विदित रहे कि पठन पाठनमें विशेष टाईम रुक जानेसे इस पुस्तककी संयोजनामें बहुत अल्प टाईम मिला है. जिससे क्रमवार शिकार प्रकरण, मांस प्रकरण, स्वार्थ प्रकरण, देव प्रकरण, आदि सुव्यवस्थि त रचना नहीं हो सकी है. इस बातका मुझे अफसोस है. आगेके भागोंमें क्रमवार रचनासे विभूषित इस पुस्तकको बनानी ' यह मेरा खास विचार है और इस विचारको अगर बनातो जरूर अमलमें रखनेकी कोशीश करूंगा. ___ जबतक इस पुस्तकके चारों भाग पाठकोंकी नज़र मुवारिकसे न गुज़रे वहाँ तक किसी एक तरफी ख्यालसे अपने मनको मजबूर मत करना. बस. यही आखिरी भलामन है. संयोजक.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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