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________________ ( १९९ ) " यदि कारयिष्यन्मारयिष्यन् भवति तदाच दाता ' आलभेत ' एवं वदेत् । ' इससे स्पष्ट हुआ कि जहां मारना हो वहां 'आलभेत ' यह प्रयोग किया जाता है. अमरकोष द्वितीय कांड क्षत्रवर्ग श्लोक अभिधानवतागण मर्त्यकांड श्लोक-३१ कोशोंमें भी ' आलंभ ' शब्दका वध अर्थ किया हुआ है. ऐतरेय ब्राह्मण पुष्ठ ८५१ तकमें ' शुनः शेप ' की कथा लिखी हुई है. ११२ - तथा इन दो प्रसिद्ध वशिष्ठ विश्वामित्र जमदग्निप्रभृति ऋषियों के अध्वर्यु होता ब्रह्मा आदि होते हुए अजीगर्त्तके द्वारा ' शुनः शेष ' स्तंभसे बंधवाया गया. तथा तलवार के द्वारा काटनेका समय आया तब ' शुनः शेषने देखा कि, ब्राह्मण वशिष्ठादि ऋषि मारने के लिये सम्मत है, अत एव वरुणकी प्रार्थना करने लगा. पीछे उसक बंधन तुटने लगे इत्यादि. यदि ' नरमेध - वेद' में न होता तो फिर वसिष्ठ जी जैसे ब्रह्मर्षि यज्ञ करनेके लिये क्यों तैय्यार होते १. इसी तरह " महाभारत' के वनपर्व में भी नरभेधका जिकर है. अब गौके विषय में देखिये ! 46 पुरुषस्य सयावरि वि ते प्राणमसिस्रसं, शरीरेण महीमहि स्ववयेहि पितृनुप प्रजयाऽस्मानिहावह । " तैत्तिरीय-आरण्यक प्रपाठ ६ अनुवाक १ मंत्र - ११ ) पदार्थ : – हे ( पुरुषस्य ) मृतपुरुषकी (समावरी )
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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