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________________ ( १५५ ) એક પળમાં તેણે ચલમના દેવતા ગંજીની અંદર મૂકા અને ટુંક મારી બળતું કર્યું, જતિ દૂર જઇ હૅપ્પમાં હાથ ચાળવા भंडी गयो. " देखलो साहिब ! है कुछ प्रमाण १ कि, जिससे घनश्यामकी मेघसमान श्याम - काली बुद्धिमेंसे निकली हुई यह कल्पना रंच मात्र भी सत्य सिद्ध हो सके. जैसे आपश्रीने मत्स्यपुराणके १२७ वें अध्यायकी सहारत देकर महादेवजीने हजारों निरापराधी प्राणियोंको जला कर भस्म कर दिया ऐसा दिखलाया. अगर घनश्यामकी बुद्धि श्यामघनकी तरह श्याम न हुई होती तो वह भी जतिके उपरोक्त वर्णनमें कुछ न कुछ प्रमाण देता कि, अमुक पुस्तकके आधारसे मैं लिखता हूं. फिर विचार किया जाता कि, उस पुस्तकका कर्त्ता मामाणिक है या अप्रामाणिक १. बादमें सत्यासत्यका निर्णय हो सकता था परंतु जहां विना ही प्रमाणके मात्र हृदयगत द्वेषको ही शांत करना हो वहां तो जैसे कोई घनश्यामका शत्रु उसके लिये ऐसा लिखे कि, घनश्याम किसीके घरमें घूसने के लिये रास्ता न मिलनेसे जाजरुके अधोद्वार ( जहां परसे भंगी गंदकी उठा ले जाते हैं ) से प्रवेश करके अमुकके घरमें गया और वहां पर एक मूत्र कुंड था, उसमें पड कर शरीरको साफ किया. उसके बाद एक महानीचकर्म किया सो अवाच्य है. बस इसी तरह जैनधर्मके शत्रु घनश्यामने भी कल्पना की है. यतिका नदी में पडना, अफ्रिका छूना, और गंजीको जला कर खुश होना किसी तरह से भी संभाव्य नहीं. हां, अगर कोई व्यक्ति अपने धर्मकर्मसे भ्रष्ट हो कर ऐसा काम करे तो कर सकता है, परंतु ऐसा भी किसी प्रमाण सिवाय नहीं लिखा जा सकता.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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