SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५०) 'विसृत पर्वतके शिखरके उंचे रत्नोंसे जडित हुए महल अग्निसे भस्म हो कर ऐसे गिरते भये जैसे कि थोथे बादल गिरते हैं. उस शिवके कोपकी अग्निने दया रहित होके उत्तम स्त्री बालक गौ पक्षी और घोडोंको दग्ध कर हजारों सोते और हजारों जागते प्राणीओंको भी भस्म कर दीया ।। २५-२८ । त्रिपुरकी अप्सराओंके समान स्त्रियां अपने अपने पुत्रोंको दृढताले पकड कर अग्निकी ज्वालाओंसे दग्ध हो कर पृथ्वीमें गिर पडती ॥२९॥ कोई स्त्रियां मोतीओंकी मालाओंसे विभूषित और नीलमणिकी मालाओंसे अलंकृत धृऐसे व्याकुल अग्निकी ज्वालाओंसे दग्ध हो कर पृथ्वीमें गिरती भई ॥ ३०-३१ ॥ कोई सूर्यके समान कांतिवाली स्त्री अपने पतिको गिरा हुआ देख कर घरके उपर ही से अपने पतिके उपर गिरती भई और गिरते ही वह स्त्री अग्निसे भस्म होगई, परन्तु वह उसका पति दानव हाथमें खङ्ग ले कर खडा हो गया और थोडे ही समयमें वह भी अग्निके तेजसे दग्ध हो कर पृथ्वी पर गिर पडा, कोई मेघके समान वर्णवाली हार तथा बाजुबंधोंसे भूषित हो कर, कोई श्वेतवर्णवाली अपने बालकको स्तन पीलाती हुई अग्निमें दग्ध हो गई. कोई अपने बालकको दग्ध हुआ देख कर मेघके समान उच्चस्वरसे रुदन करती भई. तब शिवजोके क्रोधसे उत्पन्न हुई अग्नि उस बालकको भी दग्ध कर देती भई. कोई हीरे पन्ने आदिके भूषणोंसे भूषित चंद्रमासीकी कांतिवाली स्त्री अपने बालकको गोदीमें लिये हुए दग्ध हो कर पृथ्वीमें गिरती भई कोई शशिवदना युवति अपने घरमें सोइ हुई और घरको जलता हुआ देख कर अपने दग्ध हुए पुत्रका विलाप करती भई ।। ३२-३८ ।। कोई सुवर्ण भूषणोंसे अलंकृत स्त्री दग्ध हुए बालकको गोदोमें
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy