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________________ (१४६) साथ शिवजीका बड़ा भारी युद्ध हुआ मगर शिवजीकी कुछ पेश नहीं चली तब शिवजी विष्णुके शरण गए. देखो नीचे के श्लोक" तासु तृप्तासु सम्भूता, भूय एवान्धकप्रजाः । अदितस्तैर्महादेवः, शूलमुद्गरपाणिभिः !!३४ ॥ ततः स शंकरो देव-स्त्वंधकैयाकुलीकृतः। जगाम शरणं देवं, वासुदेवमजं विभुम् ॥ ३५ ॥ ततस्तु भगवान् विष्णुः, सृष्टवान् शुष्करेवतीम् । या पपौ सकलं तेषा-मन्धकानामसृक् क्षणात् ॥ ३६ ॥ यथा यथा च रुधिरं, पिबन्त्यन्धकसम्भवम् । तथा तथाधिकं देवी, संशुष्यति जनाधिप! ॥ ३७ ।। पीयमाने तथा तेषा-मधकानां तथाऽसृजि । अन्धकास्तु क्षयं नीताः, सर्वे ते त्रिपुरारिणा ॥ ३८ ॥ मूलान्धकं तु विक्रम्य, तदा शर्वत्रिलोकधृक् । चकार वेगाच्छूलाग्रे, स च तुष्टाव शंकरम् ॥ ३९॥" इस उपरके लेखसे साफ सिद्ध हो गया कि, विष्णुसे महादेवजी ज्ञानमें हीन है, इसी वास्ते शिवजीने विष्णुका शरण लिया तो फिर शिवजीको परमात्मा तथा सर्वशक्तिमान् कैसे कह सकते हैं १. मत्स्यपुराण १५१ के अध्यायके अंतमें बयान है कि ‘शुभ' तथा ' निमि' नामक दैत्योंसे विष्णुका युद्ध हुआ उसमें विष्णु दैत्योंसे मार खा कर युद्धमेंसे भाग निकले. तथा हि
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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