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________________ (१२५) अपनी कल्पनासे कैसे कैसे फल दिखाकर भोले लोगोंको किस तरह भरमायें हैं ? इस बातका पता मध्यस्थ दृष्टिसे इस पुराणके पढ़ने वालेके सिवाय अन्यको लगना कठीन है. भला ! घरबारी ब्राह्मणलोगोंके दान देनेसे स्वर्ग मिले इस बातको कौन कबूल कर सकता है ?. शुद्धाचारी ब्रह्मचर्यनिष्ठ पूर्ण सन्यस्त त्यागी पुरुषोंको अन्नादिक योग्य दान देनेसे ही महाफल हो सकता है न कि संसारके सब ही कार्यों में फंसे हुए को. और मत्स्यपुराणके ६९ वे अध्यायमें वेश्याके कर्म करनेवाली स्त्रीयोंको शुद्ध करनेके व्रतका विधान है कि, वेदके पारके जाननेवाले धर्मज्ञ व्यंग अंग सहित ब्राह्मणको बुला कर पुष्प धूप दीप और नैवेद्यादि पदार्थोंसे स्त्री पूजें ॥ ४२ ॥ और उसी ब्राह्मणके अर्थ घृत पात्र संयुक्त एक शेर चावलोंको भरे पात्रको 'माधव भगवान् प्रसन्न हो' यह कह कर दान करें ॥४३॥ और उसी उत्तम ब्राह्मणको अपने चित्तसे कामदेवके समान मानकर इच्छा पूर्वक भोजन करवावे ॥ ४४ ॥ और जिस जिस वस्तुकी वह ब्राह्मण इच्छा करे वह सब उस सुंदर हास्यवाली स्त्रीको आत्मभावसे उसकी तृप्ति पर्यंत देना चाहिये ॥ ४५ ॥ इस रंतिसे हर रविवारके दिन सुंदर आचरण करती हुई तेरह महिने तक प्रत्येक रविवारको एक शेर चावलोंका दान करती रहे, जब तेरहवा महिना आवे तब उसी ब्राह्मणके निमित्त सर्व सामग्री समेत शय्या दान करे । अर्थात् शय्या उपर उत्तम तकीया बीछौना दीपक जुत्तीका जोडा छत्री खटाउ-पादुका धोतीका जोडा आसन इन सब वस्तुओंसे शोभित करी हुई शय्याको स्त्री समेत होकर सपत्नीक ब्राह्मणको दे देवें । इस विवाग उत्तम रेशमी वस्त्र, सुवर्णके भूषण,
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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