SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२१) रचना करी तब विष्णु सर्वज्ञ था या असर्वज्ञ ?, अगर वो ऐसा कहे कि,विष्णु तो सदा ही सर्वज्ञ है, तत्र तो विष्णु जानता ही होगा कि-मैं जिन जीवोंको रचता हूं उन जीवोंमेंसे अमुक अमुक जीव आगे जाकर अत्यंत दुष्टकृत्य करेंगे, ऐसे जानते हुए भी उन दुष्टकृत्य करनेवालोंको विष्णुने उत्पन्न किया तब तो जगत्में जो जो दुष्टकृत्य हो रहे हैं उन सब दुष्टकृत्योंका करानेवाला विष्णु ही सिद्ध हो गया, जब ऐसा है तब तो विष्णुमें परमात्मपना दयालुता तथा सज्जनताका लेश भी सिद्ध नहीं होता, तब विष्णुको परमात्मा समझके जो लोग पूजन करते हैं उन लोगोंको कैसा फल मिलेगा?,इस बावतका विचार बुद्धिमान् लोग स्वयमेव करेंगे. तथा विष्णु ही धर्म का रक्षक है तो फिर धर्मका रक्षण विष्णु क्यों नहीं करता है ?. देखोजैन बौद्ध मुसलमान इशाई और आर्यसमाजी वगैरा मतोंवाले वैष्णव तथा शैव मतका खंडन करते हैं उनको विष्णु शिक्षा क्यों नहीं करता ?, तथा खंडन करनेवाले लोगोंको क्यों नहीं रोकता ? । इत्यादिक हेतुओंसे पुराणादिकका कथन हमारी समझ मुजिब नो असत्य है । क्यों कि स्वार्थीलोगोंने अपने स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये मनोकल्पनासे पुराणादिक कितने ही ग्रंथोकी रचना कर ली है और उन शास्त्रोंको सुननेका. हद पार माहात्म्यका गान किया है जिससे भोले लोग फंस कर मन माना दान देवें और वे लोग अपना सुखसे गृहव्यवहार चला लेखें, इसके सिवा और कुछ विशेष तत्त्व मालूम नहीं होता. मत्स्यपुराण-तृतीय अध्याय-पत्र १० वे में वयान है कि, ब्रह्माजी कामसे पीडित हो कर · शतरूपा' नामकी स्त्रीसे देवताओंके सौ सौ वर्ष पर्यंत रमण करते भये.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy