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________________ (११६) ब्राह्मणको देवे, देखिये ! कुछ कसर रक्खी है ?, सोना चांदी रत्न वगैरह सब सामग्री लिख दी, अरे ! यह बात तो दूर रही परंतु इसी वराहपुराणके ६८ वे अध्यायमें-" चतुर्गामी भवेद् विप्रः" ब्राह्मण चारों वर्णकी स्त्रीओंका गमन कर सकता है वहां तक भी लिखा गया है. इस पुराणमें लिख ते हैं कि रुद्रने विष्णुकी तारीफकी और सर्वसे उत्तम देव उसको कहा, और शिवपुराणमें लिखते थे कि विष्णुने महादेवजीकी तारीफ करी, और उनकुं वडा माना, क्या इससे पुराणाकी काल्पनिकता सिद्ध नहीं होती। वराहपुराण श्वेतविनीताश्व उपाख्यान नामक सौवें अध्यायमें जलधेनु देनेकी विधि है, जिसमें भी पांच पाणीके घडेमें रत्न डालने लिखे हैं, लोभका भी कुछ सुमार है?, ऐसे लोभी उनके स्वार्थनाशक परमार्थपथप्रकाशक वैराग्यमार्ग विकाशक और मोक्षमार्गके पोषक जैनधर्मकी तारीफ कैसे कर सकते हैं १. वराहपुराण श्वेतविनीताश्व उपाख्यान रसधेनुदान माहात्म्य नामके १०१ वे अध्यायमें लिखा है कि" रसधेनुविधानं ते, कथयामि समासतः । अनुलिप्ते महीपृष्ठे, कृष्णाजिनकुशास्तरे ॥१॥ १ रुद्रगीता सुवैराजवृत्त नामके ७३ वे अध्यायमें,
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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