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________________ (११४) मार मार कर उनके चमडौंका पहाड बनानेका जिकर हो उन शास्त्रोंको कुशास्त्र कहना चाहिये कि अहिंसामय परमपवित्र जैनशास्त्रोंको ?. जिन लोगोंकी बुद्धिका इतना* विपर्यय हो गया हो कि, सुन्नेको पीतल और पीतलको सुन्ना कहे उनके वचन पर विश्वास करना अकलमंदोंका काम नहीं.. ___प्रायशः ब्राह्मणलोगोंने अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये ही ब्राह्मणग्रंथ बनायें हैं. जैनग्रंथ परमार्थमार्गको दिखाते हैं. इन ग्रंथों के पढनेसे विवेकचक्षु प्रफुल्लित होने पर लोग हमारी पोल देख न ले इस लिये उन्होंने जैनमतके लिये बुरा भला लिख कर लोगोंको उस सत्यमार्गसे वंचित रकावा है. देखो उनके स्वार्थपोषक कथनका नमूना-- वराहपुराण--अगस्त्यगीता सुशान्तिव्रत नामके ६० वे अध्यायमें लिखा है कि--- ." एवं संवत्सरस्यान्ते, ब्राह्मणान् भोजयेत् ततः।" भावार्थ इस प्रकार मुशांतिव्रत करके वर्षकी अंतमें ब्राह्मणोंको जीमाना चाहिये । इत्यादि अनेक अध्याय इस वराहपुराणमें लिखें है, उनमें प्रायः करके अमुक व्रत करके * देखो उनकी बुद्धिविपर्ययका नमुना-शिवपुराणमें गणपतिकी उत्पत्ति पार्वतीके मेलसे लिखी हैं और वराहपुराण के २२ वे अध्यायमें परमेष्ठिक मुखसे लिखी है और लिखा है कि, उसके रूपको देख कर उमा मोहित हो गई, जिससे महादेवजीको क्रोध आया और उस लडकेको शाप दिया. ऐसे विरुद्ध वर्णनवाले पुराणादि ग्रंथोंको सत्य कौन कह सकता है।
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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