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________________ ( ८१ ) तत आह बलो नूनं, स मणिः शतधन्वना । कस्मिंश्चित्पुरुषे न्यस्त स्तमन्वेष पुरं व्रज ॥ २३ " भावार्थ - भगवान् श्रीकृष्णने तीक्ष्ण धारवाले चक्र द्वारा शतधनुका शिर छेदन किया और उसके कपडे फरोले, मगर मणि नहीं मिला, तब बलभद्रजीकी पास आ कर कहने लगा कि मैने नाहक शतधनुको मारा कारणकि मणि नहीं मिला, बलभद्रने जवाब दिया कि किसी आदमीको उसने मणि दी होगी, आगे जाओ और तलास करो. इस लेख से श्रीकृष्ण अल्पज्ञानी साबित हुए, अगर उनको संपूर्ण ज्ञान होता तो मणि कहां है ? जान लेते और ऐसी हत्या नहीं करते, लोभके वश निरापराधी पाणीओंकी जान लेनेवालेमें परमेश्वरत्व कदापि सिद्ध नहीं हो सकता, अज्ञानी लोभी तथा हिंसकको देव माननेवाले मिथ्यादृष्टि कैसे उन्नत है ? कि शुद्धस्वरूप परमपवित्र जिनेश्वरदेव के कथन करे हुए शुद्धतत्रोंसे घृणा करके अपने पूर्ण दुर्भाग्यसे ऐसे मलीन तत्रोंमें सूकरवत् पयःपानको छोड़ कर अपवित्र पदार्थकी रुवी करते हैं, अरे ! मिथ्यात्व ! तेरी गति अजब है, मनुष्य जब तक तेरे फंदे मे फंसे हुए हैं, वहां तक हमे यह दृढ निश्चय है कि वे उल्लुकी तरह जैनधर्मरूपी सत्य सूर्योदय के कभी दर्शन नहीं कर सकेंगे. भागवत दशम स्कंध उत्तरार्द्ध अध्याय ११ पत्र १८३ में राजा मुचुकुंदको श्रीकृष्णने उपदेश किया है, उससे साफ सिद्ध हो जाता है कि सजालोगोंको शिकार वगैरह के कर ११
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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