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________________ (७३ भावार्थ-हे भानो! हे प्रभाकर ! हे जगत्पते ! इस मुख्य दैत्यसे मैं पीडित हूँ ॥ ७० ॥ हे सूर्य ! मै क्या करूं १, इसको किस तरह मारूं ?, तब सूर्यने जवाब दिया कि सेंकडो तरहकी मायामें चतुर ऐसे इस पापिष्ठका त्रिशूलसे जय कर ॥ ७२ ॥ __इस उपरके लेखसे स्पष्ट सिद्ध होता है कि महादेवजी सर्व शक्तिमान् और सर्वज्ञ नहीं थे, कारण कि सर्व शक्तिमान् होते तो अंधक दैत्यकी गदांके मारसे मूर्छिन होकर पृथ्वी पर दो घडी तक वेहोश पडे नहीं रहते और सर्वज्ञ होते तो सूर्य देवतासे आजीजी कर उस दैत्यके मारनेका उपाय क्यों पूछते ?. पद्मपुराण प्रथम सृष्टिखंड अध्याय ५६ पृष्ठ १७० वेसे सावित है कि महादेवजी कामके वशीभूत होकर परस्त्रीओंको भी भोगते थे, देखो नीचेके श्लोक --- " पुरा सर्वाः स्त्रीयो दृष्ट्वा, युवतीः रूपशालिनी। गन्धर्वकिन्नराणां च, मनुष्याणां च सर्वतः ॥ १ ॥ मन्त्रेण ताः समाकृष्य, त्वतिदूरे विहायसि । तपोव्याजपरो देव-स्तासु संगतमानसः ॥२॥ अतिरम्यां कुटीं कृत्वा, ताभिस्सह महेश्वरः। क्रीडां चकार सहसः, मनोभत्रपराभवः ॥ ३ ॥" भावार्थ-पेश्तर गंधर्व किन्नर और मनुष्योंकी रूपवती युवति स्त्रीओंको मंत्रबलसे आकाशमें खींच खींच कर तपके बहानेसे अति सुंदर कुटीया बनाकर महादेवजी उनके साथ क्रीडा करते हुए ( भोग भोगते हुए ).
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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