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________________ 246 Studies in Umāsvāti होते हैं। अतः इन दोनों का पृथक् कथन आगम एवं कर्मसिद्धान्त की दृष्टि से अपेक्षित प्रतीत होता है। (ii) आठ कर्मों में से चार घाती कर्म ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय एवं अन्तराय-पापकर्म हैं। केवलज्ञान की प्राप्ति हेतु इनका क्षय अनिवार्य होता है। पुण्य कर्मों के क्षय की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए पापकर्म जहाँ मुक्ति में बाधक हैं, वहां पुण्य कर्म नहीं, पुण्य कर्म तो अघाती हैं' जो आत्मा की कोई घात नहीं करते। वे देशघाती भी नहीं है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, वज्रऋषभनाराच संहनन, समचतुरस्रसंस्थान आदि पुण्य कर्म तो मुक्ति में सहायक माने गये हैं। इसलिए पुण्य एवं पाप दोनों का पृथक् बोध आवश्यक होने से इन्हें तत्त्वगणना में पृथक् रूपेण स्थान देना उचित प्रतीत होता है।28 (iii) आगमों में सर्वत्र पाप के त्याग का ही विधान है तथा पाप-प्रकृतियों के क्षय का ही निरूपण है। पुण्य त्याग या उसका क्षय करने की प्रेरणा कहीं नहीं की गई है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं तवसा धुणइ पुराणपावगं, जुत्तो सया तवसमाहिए।" - दशवैकालिकसूत्र, 9.4.4 तप-समाधिसे युक्त साधक सदैव तप के द्वारा प्राचीन (पूर्वबद्ध) पापकर्मों को नष्ट करता है। संवरेणं कायगुत्ते पुण्णे पावासवनिरोहं करेइ।० __-उत्तराध्ययनसूत्र, 29.55 (iv) आत्मा के शुभ परिणामों के कारण योग शुभ एवं अशुभ परिणामों के कारण योग अशुभ होता है।1 कर्मों के शुभाशुभ का कारण होने से योग शुभाशुभ नहीं होते। यदि ऐसा कहा जाए तो शुभ योग होगा ही नहीं, क्योंकि शुभ योग को भी ज्ञानावरण आदि कर्मों के बन्ध का कारण माना गया है। जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य है तथा जो पुण्य का विरोधी है वह पाप है। इसे दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि संक्लेश पाप है एवं विशुद्धि पुण्य है। संक्लेश में कषायवृद्धि होती है तथा विशुद्धि में कषाय-कमी। इस प्रकार पुण्य-पाप को समान समझना उपयुक्त नहीं। (v) कसायपाहुड की जयधवला टीका में अनुकम्पा एवं शुद्ध उपयोग को पुण्यास्रव का हेतु तथा इसके विपरीत निर्दयता एवं अशुद्ध उपयोग को पापास्रव का हेतु बताया गया है
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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