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________________ 244 Studies in Umāsvāti पहले मोहकर्म का क्षय होता है, फिर युगपद् रूप से ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अन्तरायकर्म का नाश होकर केवलज्ञान प्रकट होता है। यह तथ्य दोनों ग्रन्थों में समान है किन्तु प्रशमरतिप्रकरण में यह भी प्रतिपादित किया गया है कि वह केवलज्ञान शाश्वत, अनन्त, अनतिशय, अनुपम, अनुत्तर, निरवशेष, सम्पूर्ण एवं अप्रतिहत होता है। (ii) तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात्। -तत्त्वार्थसूत्र, 10.5 सिद्धस्योर्ध्वं मुक्तस्यालोकान्ताद् गतिर्भवति।।- 294 लोकाग्रतः सिध्यति साकारेणोपयोगेन।। - प्रशमरतिप्रकरण, 289 (iii) पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च तद्गतिः। -तत्त्वार्थसूत्र, 10.6 पूर्वप्रयोगसिद्धेर्बन्धच्छेदादसंगभावाच्च। गतिपरिणामाच्च तथा सिद्धस्योर्ध्व गतिः सिद्धा।। - प्रशमरतिप्रकरण, 295 उपर्युक्त दोनों स्थलों में दोनों ग्रन्थों का कथ्य लगभग समान है। प्रशमरतिप्रकरण और तत्त्वार्थसूत्र : पारस्परिक भेद वैषम्य प्रशमरतिप्रकरण एवं तत्त्वार्थसूत्र में जिन बिन्दुओं पर पारस्परिक भेद दृष्टिगोचर होता है उनमें से कुछ प्रमुख विषयों पर यहाँ विचार किया जा रहा है(1) नव तत्त्व तत्त्वार्थसूत्र में सात तत्त्व निरूपित हैं, जबकि प्रशमरतिप्रकरण में नौ पदार्थों का उल्लेख है, यथा - जीवाजीवात्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्। –तत्त्वार्थसूत्र, 1.4 जीवाजीवाः पुण्यं पापास्रवसंवराः सनिर्जरणाः। बन्धा मोक्षाश्चैते सम्यक् चिन्त्याः नवपदार्थाः।। - प्रशमरतिप्रकरण,189 इस सम्बन्ध में चार बिन्दु विचारणीय हैं - (क) पदार्थ एवं तत्त्व में कोई भेद है या नहीं? (ख) उमास्वाति ने नौ पदार्थों के स्थान पर सात तत्त्वों का निरूपण किस अपेक्षा से किया?
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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