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________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण : एक अध्ययन 239 तत्त्वार्थसूत्र, 2.30 समयेनैकेनाऽविग्रहेण गत्वोर्ध्वमप्रतिघः । - प्रशमरतिप्रकरण, 288 (v) एकसमयोऽविग्रहः। अध्याय-5 (i) — संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् । - तत्त्वार्थसूत्र, 5.10 नाणोः । - तत्त्वार्थसूत्र, 5.11 द्वयादिप्रदेशवन्तो यावदनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धाः । परमाणुरप्रदेशो वर्णादिगुणेषु भजनीयः । । - प्रशमरतिप्रकरण, 208 प्रशमरति के अनुसार पुद्गल स्कन्धों में दो से लेकर अनन्त प्रदेश होते हैं, परमाणु में कोई प्रदेश नहीं होता। इस तथ्य को तत्त्वार्थसूत्र में इस प्रकार प्रकट किया गया है कि पुद्गल में संख्येय, असंख्येय एवं अनन्त प्रदेश होते हैं, जबकि अणु में कोई प्रदेश नहीं होता । (ii) लोकाकाशेऽवगाहः। - तत्त्वार्थसूत्र, 5.12 धर्माधर्मयोः कृत्स्ने । - तत्त्वार्थसूत्र, 5.13 असंख्येयभागादिषु जीवानाम् । - तत्त्वार्थसूत्र, 5.15 लोकालोकव्यापकमाकाशं मर्त्यलौकिकः कालः। लोकव्यापि चतुष्टयमवशेषं त्वेकजीवो वा ।। -प्रशमरतिप्रकरण, 213 आकाश लोक एवं अलोक में रहता है, काल मनुष्य लोक में रहता है, शेष चार द्रव्य लोकव्यापी हैं, एक जीव के प्रदेश भी लोकव्यापी कहे गए हैं। तत्त्वार्थसूत्र धर्म एवं अधर्म द्रव्य को सम्पूर्ण लोक में व्याप्त कहा गया है, तथा लोकाकाश के असंख्यातवें भाग से लेकर सम्पूर्ण लोक तक जीवों का अवगाहन कहा है। (iii) आऽऽकाशादेकद्रव्याणि । तत्त्वार्थसूत्र, 5.5 निष्क्रियाणि च। तत्त्वार्थसूत्र, 5.6 धर्माधर्माकाशान्येकैकमतः परं त्रिकमनन्तम् । कालं विनाऽस्तिकाया जीवमृते चाऽप्यकर्तृणि।। – प्रशमरतिप्रकरण, 214 धर्म, अधर्म एवं आकाश संख्या में एक-एक हैं तथा निष्क्रिय हैं। यह कथन दोनों ग्रन्थों में समानरूप से हुआ है। किन्तु प्रशमरतिप्रकरण में शेष तीन द्रव्यों पुद्गल, जीव और काल को अनन्त प्रतिपादित करते हुए काल को छोड़कर — -
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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