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________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण : एक अध्ययन 237 प्रशमरतिप्रकरण की दूसरी पंक्ति का साम्य तत्त्वार्थभाष्य की निम्न पंक्ति में द्रष्टव्य है एतानि च समस्तानि मोक्षसाधनानि, एकतराऽभावेऽप्यसाधनानीत्य तस्त्रयाणां ग्रहणम्। – तत्त्वार्थभाष्य, 1.1 (ii) तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्। तन्निसर्गादधिगमाद्वा। - तत्त्वार्थसूत्र, 1.2-3 एतेष्वध्यवसायो योऽर्थेषु विनिश्चयेन तत्त्वमिति। सम्यग्दर्शनमेतच्च, तन्निसर्गादधिगमाद्वा।। -प्रशमरतिप्रकरण, 222 इनमें 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' का भाव साम्य है तो 'तन्निसर्गादधिगमाद्वा' अंश तो पूर्णतः शब्दशः ज्यों का त्यों उभयत्र प्राप्त है। (iii) सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य। - तत्त्वार्थसूत्र, 1.30 कात्ाल्लोकालोके व्यतीतसाम्प्रतभविष्यतः कालान्। द्रव्यगुणपर्यायाणां ज्ञाता द्रष्टा च सर्वाथैः।। - प्रशमरतिप्रकरण, 270 प्रशमरतिप्रकरण में जहाँ केवलज्ञानी को लोक एवं अलोक के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य काल के समस्त द्रव्य, गुण एवं पर्यायों का ज्ञाता-द्रष्टा कहा गया है वहाँ तत्त्वार्थसूत्र में उसे सूत्र शैली में समस्त द्रव्य एवं पर्यायों का ज्ञाता कहा गया है। (iv) एक जीव में एक साथ कितने ज्ञान हो सकते हैं इस सम्बन्ध में तत्त्वार्थसूत्र एवं प्रशमरतिप्रकरण में उमास्वाति मिलती-जुलती शब्दावली में कहते हैं कि एक जीव में एक से लेकर चार ज्ञान तक पाये जा सकते हैं एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्थ्यः। - तत्त्वार्थसूत्र, 1.31 एकादीन्येकस्मिन् भाज्यानि त्वाचतुर्थ्य इति।। -प्रशमरतिप्रकरण, 226 (v) मतिश्रुताऽवधयो विपर्ययश्च। - तत्त्वार्थसूत्र, 1.32 आद्यत्रयमज्ञानमपि भवति मिथ्यात्वसंयुक्तम्। – प्रशमरतिप्रकरण, 227 इन दोनों पंक्तियों में भावसाम्य है। 'आद्यत्रयज्ञान' मति, श्रुत एवं अवधिज्ञान का ही द्योतक है तथा ये तीनों ज्ञान मिथ्यात्व से युक्त होने पर विपर्यय को प्राप्त होते हैं।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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