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________________ तत्त्वार्थसूत्र में निर्जरा की तरतमता के स्थान : एक समीक्षा 223 नियुक्तिकार ने प्रथम सम्यग्दृष्टि के स्थान पर सम्यक्त्व-उत्पत्ति तथा चौथी अनन्तवियोजक के स्थान पर अनन्त-कर्मांश नाम का उल्लेख किया है। उमास्वाति ने इन दोनों नामों को अधिक स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है। श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के साहित्य में कुछ अन्तर के साथ ये अवस्थाएं मिलती हैं। उन नामों के सूक्ष्म अन्तर को इस सारिणी के माध्यम से जाना जा सकता है श्वेताम्बर परम्परा शिवशर्मकृत कर्मग्रन्थ' चन्द्रर्षि कृत पंचसंग्रह' देवेन्द्रसूरि कृत तक कर्मग्रन्थं ई. सन् पांचवीं शती ई. सन् आठवीं शती विक्रम की पांचवीं शती 1. सम्यक्त्व उत्पत्ति सम्यक्त्व सम्यक् 2. श्रावक देशविरति देशविरति 3. विरत सम्पूर्ण विरति सर्वविरति 4. संयोजना विनाश अनन्तानुबन्धी विसंयोग अनन्त विसंयोग 5. दर्शनमोहक्षपक दर्शनमोहक्षपक दर्शनक्षपक 6. उपशमक उपशमक शम 7. उपशान्त उपशान्त शान्त 8. क्षपक क्षपक क्षपक 9. क्षीणमोह क्षीणमोह क्षीण 10. द्विविध जिन सयोगी केवली सयोगी (केवली) (सयोगी एवं अयोगी) अयोगी केवली अयोगी (केवली) दिगम्बर परम्परा कार्तिकेयानुप्रेक्षा षट्खण्डागम, गोम्मटसार (जीवकाण्ड) 1. मिथ्यादृष्टि ___- 1. सम्यक्त्व उत्पत्ति 2. सदृष्टि 2. श्रावक 3. अणुव्रतधारी 3. विरत 4. ज्ञानी महाव्रती 4. अनन्तकर्मांश 5. प्रथमकषाय चतुष्क वियोजक 5. दर्शनमोहक्षपक
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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