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________________ 17 तत्त्वार्थसूत्र का व्याख्या साहित्य फूलचन्द जैन प्रेमी जैन आगमों की मूल भाषा प्राकृत है क्योंकि सभी तीर्थंकरों ने इसी जनभाषा प्राकृत में उपदेश दिया। आरम्भ में आचार्य परम्परा ने भी प्राकृत भाषा को ही शास्त्र-लेखन का माध्यम बनाया। किन्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आधार पर समयानुसार आचार्य अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं में भी शास्त्र-रचना करने में अग्रणी रहे। जब देखा कि संस्कृत भाषा में शास्त्र-लेखन समाज में प्रतिष्ठा का मुद्दा बनने लगा है, तब जैनाचार्य भी इस भाषा में लेखन की ओर उन्मुख हुए। सर्वप्रथम जैन सूत्र परम्परा में संस्कृत भाषा में 'तत्त्वार्थसूत्र अपरनाम मोक्षशास्त्र' जैसा अति उत्कृष्ट ग्रन्थ लिखने का गौरव आचार्य उमास्वामी को प्राप्त हुआ। आचार्य उमास्वामी के अपरनाम उमास्वाति या गृद्धपिच्छाचार्य भी प्रचलित हैं। ईसा की प्रथम शती के आस-पास इन्होंने प्राचीन जैनागमों के आधार पर इस तत्त्वार्थसूत्र जैसे महनीय ग्रन्थरत्न की रचना की। तत्त्वार्थसूत्र के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आचार्य उमास्वामी ने अर्धमागधी आगमों के साथ-साथ आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि प्रणीत षट्खण्डागम तथा आचार्य कुन्दकुन्द जैसे प्राचीन पूर्वाचार्यों द्वारा रचित शास्त्रों एवं मूल आगमिक परम्परा के विशिष्ट आगमों के बीज लेकर जैनधर्म की सभी परम्पराओं द्वारा सर्वमान्य तत्त्वार्थसूत्र जैसे महनीय ग्रन्थ की रचना की और शाश्वत जैन-धर्मदर्शन के विशाल वृक्ष को पल्लवित और पुष्पित करने में महान् योगदान किया। ___ यह एक आधारभूत ऐसा सूत्रग्रन्थ सिद्ध हुआ कि दस अध्यायों एवं 357 सूत्रों से युक्त इस ग्रन्थ के आधार पर अनेक प्राचीन और अर्वाचीन आचार्यों और विद्वानों ने व्याख्या ग्रन्थ लिखकर अपने को गौरवशाली अनुभव किया। वस्तुतः इस ग्रन्थ में चारों अनुयोगों का सार समाहित है।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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