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________________ 202 Studies in Umāsvāti आचार्य कुन्दकुन्द के प्राकृत ग्रन्थों और तत्त्वार्थसूत्र के संस्कृत सूत्रों में उक्त प्रकार से अन्य समानताएं एवं विषय की एकरूपता को खोजा जा सकता है। कुन्दकुन्द के अतिरिक्त भी गृद्धपिच्छ ने षट्खण्डागम एवं आगम ग्रन्थों के विषय को भी अपने ग्रन्थ में सूत्र रूप में संजोया है।” किन्तु इससे ग्रन्थ या ग्रन्थकार की महत्ता कम नहीं होती । जैन साहित्य के इतिहास की दृष्टि से यह स्पष्ट है कि जैन साहित्य में संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम जैन सूत्रग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र है और संस्कृत के प्रथम जैन रचनाकार गृद्धपिच्छ हैं, जो कालान्तर में उमास्वामि या उमास्वाति नाम से भी प्रसिद्ध हुए । तत्त्वार्थसूत्र में दस अध्यायों में 357 सूत्रों में समस्त जिनागम के सार को भर दिया गया है। यह ग्रन्थ करणानुयोग, द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग का प्रतिनिधि ग्रन्थ बन गया है। इसके दस अध्यायों में सात तत्त्व विवेचित हुए हैं। नय-विवेचन इस ग्रन्थ की अनुपम शैली है। आधुनिक विषयों की दृष्टि से तत्त्वार्थसूत्र में भूगोल, खगोल, आचार, अध्यात्म, द्रव्य एवं तत्त्वव्यवस्था, सृष्टिविद्या, ज्ञानमीमांसा, कर्मविज्ञान आदि का प्रामाणिक विवेचन उपलब्ध है। जैन तत्त्वदर्शन को तत्त्वार्थसूत्र के अध्ययन के बिना नहीं समझा जा सकता है। देश - विदेश में इस ग्रन्थ की पर्याप्त ख्याति है। संक्षेप में कहा जाय तो आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का मुख्य विषय अध्यात्म है, अपर विषय प्रासंगिक हैं, जबकि तत्त्वार्थसूत्र का मुख्य विषय मोक्षमार्ग का निरूपण है, अन्य विषय उसके आधाररूप में कहे गये हैं। इन दोनों आचार्यों के ग्रन्थों के अध्ययन/स्वाध्याय से जैनधर्म का मर्म समझ में आता है । तत्त्वार्थसूत्र में वर्णित विषयों के मूल आधार को खोजने का प्रयत्न ग्रन्थकार की बहुश्रुतता, अनेकान्तमयी दृष्टि को रेखांकित करना होना चाहिए, सम्प्रदायभेद को प्रखर करना नहीं। सन्दर्भ 1. षट्खण्डागम, धवलाटीका, जीवस्थान, काल अनुयोगद्वार, पृ. 316। 2. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ. 61 3. पार्श्वनाथचरितम्, 1/16 । 4. तत्त्वार्थसूत्र की पाण्डुलिपियों के अन्त में उपलब्ध पद्य। 5. जैनशिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेख संख्या 108, पृ. 210-11। 6. जैनसिद्धान्त भास्कर, भाग 1, किरण 4, पृ. 78।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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