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________________ 31 काल का स्वरूप (ख) दवणामे छविहे पण्णत्ते, तंजहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए, अद्धासमए य - अनुयोगद्वारसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, सूत्र 218 23. “किमियं भंते! लोयत्ति पवुच्चइ ? गोयमा पंचत्थिकाया।" - व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, (राज.) 1983, शतक, 13.4.481 24. अन्यत्र भी उल्लेख प्राप्त होता है। द्रष्टव्य- पण्डित सुखलाल संघवी, 'दर्शन और चिन्तन', ___पं. सुखलाल सन्मान समिति, अहमदाबाद, 1953, पृ. 331 25. उद्धृत, लोकप्रकाश, चतुर्थ भाग, श्री भैरूलाल कन्हैयालाल कोठारी रीलिजियस ट्रस्ट, बालकेश्वर, मुम्बई, पृ. 3 26. स्थानाङ्गसूत्र, स्थान 2, उद्देशक 4, उद्धृत, लोकप्रकाश, चतुर्थभाग, 27. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा, 20-26 28. न हि जीवादिवस्तुव्यतिरिक्तः कश्चित् कालो नाम पदार्थविशेषः परिकल्पितः एकः प्रत्यक्षेणोपलभ्यते।- धर्मसंग्रहणि, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोलका, गाथा 32 पर टीका 29. वही, गाथा 32 पर टीका 30. वही, गाथा 32 पर टीका 31. लोकप्रकाश, 28.13-15 एवं 29.16-17 32. द्रष्टव्य- उपर्युक्त टिप्पण, 22 33. तत्त्वार्थसूत्र, 5.37 34. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, आचार्य कुन्थुसागर ग्रन्थमाला, शोलापुर, 1951, 5.39.2-3, 35. वही, 5.40.2 36. धर्मसंग्रहणि, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोलका, गाथा 32 पर टीका, पृ. 38 37. लोकप्रकाश, श्री जिनाज्ञा प्रकाशन, वापी (गुज.), वि.सं. 2062, 28.16 38. वही, 28.21, 39. वही, 28.25 40. वही, 28.48 41. वही, 28.49-50 42. वही, 28.53-54 43. वही, 28.20 44. तत्त्वार्थवार्तिक, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, काशी, 1955, 5.22
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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