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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
निवारेति माहण भो ! मा हण इति एवं ते जणेण सुक्कमनिवतितसन्ता बंभणा जाता ।।
आचारांगचूर्णि 14. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
उरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ।।- ऋग्वेद, पुरुषसूक्त, 10.90.12 15. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग-2, सम्पादक : महेन्द्रकुमार, माणिक्यचन्द्र दिगम्बर जैनग्रन्थमाला, ____ मुम्बई, 1941, श्लोक 65 पर टीका 16. दीघनिकाय, भाग-1, बौद्ध भारती प्रकाशन, वाराणसी, वासेट्ठसुत्त 17. सुत्तनिपात, वासेट्ठसुत्त 18. सुत्तनिपात, वासेट्ठसुत्त, 50 19. जहा पोम्मं जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ।। ____ उत्तराध्ययनसूत्र 25.27 20. उत्तराध्ययनसूत्र, 25.23-26, 28-29 21. धम्मपद, ब्राह्मणवग्गो, गाथा - 9, 11 एवं 28 22. सुत्तनिपात, ब्राह्मणधम्मिक- सुत्त, गाथा 9 23. सुत्तनिपात, ब्राह्मणधम्मिक-सुत्त, गाथा 2 24. दीघनिकाय भाग-3, बौद्ध भारती प्रकाशन, वाराणसी, अग्गज्ञसुत्त, पृ. 652-653 25. धम्मपद, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, धम्मट्ठवग्गो, गाथा 15 26. दीघनिकाय भाग-3, अग्गज्ञसुत्त, पृ. 653-654 27. मज्झिमनिकाय, भाग 3-4, बौद्ध भारती, वाराणसी, पृ. 963 28. वही, पृ. 964 29. वही, पृ. 967 30. सनातन हिन्दूधर्म और बौद्धधर्म, श्यामसुन्दर उपाध्याय, विश्वविद्यालय प्रकाशन,वाराणसी,
2002, पृ. 60 31. आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 2000, पर्व 39, पृ. 269 32. द्रष्टव्य, आचारदिनकर, (तीन भाग) हिन्दी अनुवाद : मोक्षरत्नाश्री एवं डॉ. सागरमल जैन,
प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर, उदय 1-40 33. सर्व एव हि जैनानां, प्रमाणं लौकिको विधिः ।
यत्र सम्यक्त्वहानिर्न, यत्र न व्रतदूषणम् ।- यशस्तिलकचम्पू 8.34