SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 448 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन उपसंहार ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाए तो जैनधर्म (निर्ग्रन्थधर्म) बौद्ध धर्म की अपेक्षा प्राचीन है, क्योंकि तीर्थकर महावीर के पूर्व भी परम्परा में 23 तीर्थकर हो गए हैं, जिनमें ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकरों के पुष्ट प्रमाण भी प्राप्त होते हैं। बौद्धदर्शन में भी अतीत बुद्ध माने गए हैं, किन्तु उनके ऐतिहासिक दस्तावेज प्राप्त नहीं होते। बौद्ध धर्म सौत्रान्तिक, वैभाषिक, माध्यमिक (शून्यवाद) एवं योगाचार (विज्ञानवाद) सम्प्रदायों में विभक्त होकर विकसित हुआ है, जबकि जैनधर्म दिगम्बर, श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों में विभक्त होकर विकसित हुआ है। बौद्ध दर्शन की विभिन्न सम्प्रदायों में तत्त्वमीमांसीय मान्यताओं में पर्याप्त मतभेद दृग्गोचर होता है, जबकि जैनदर्शन की सम्प्रदायों में आचार-भेद को छोड़कर ऐसा कोई तत्त्वमीमांसीय भेद दिखाई नहीं देता है। जैन दर्शन के सम्प्रदाय वस्तु को द्रव्यपर्यायात्मक स्वीकार करते हैं तथा उसका बाह्य अस्तित्व मानते हैं। बौद्ध दर्शन के सम्प्रदाय विज्ञानवाद के मत में वस्तु का बाह्य अस्तित्व ही मान्य नहीं है, वह विज्ञान को ही सत् स्वीकार करता है। सौत्रान्तिक एवं वैभाषिक मत में बाह्य वस्तु का अस्तित्व तो स्वीकृत है, किन्तु वे उसे क्षणिक मानते हैं। माध्यमिक मत में वस्तु प्रतीत्यसमुत्पन्न होने से निःस्वभाव है तथा सत्, असत्, सदसत् एवं न सत् न असत्- इन चार कोटियों से विनिर्मुक्त है। जैन दर्शन में वस्तु को सदसदात्मक स्वीकार किया गया है। जैनदर्शन में मान्य वस्तु का लक्षण "उत्पादव्ययघ्रौव्ययुक्तं सत्" सभी द्रव्यों या पदार्थों पर समान रूप से लागू होता है। जैन दर्शन में षड्द्रव्यात्मक लोक की जैसी मान्यता है वैसी कोई मान्यता बौद्ध दर्शन में दिखाई नहीं देती। ___ बौद्ध दर्शन में शाश्वतवाद एवं उच्छेदवाद का परिहार किया गया है। इसीलिए बुद्ध आत्मा की शाश्वतता एवं अशाश्वतता आदि प्रश्नों के सम्बन्ध में मौन हैं । आत्मा को स्वीकार करने पर शाश्वतवाद का तथा उसे न मानने पर उच्छेदवाद का आक्षेप आता है, जिसे टालने के लिए बुद्ध ने इस प्रकार के प्रश्नों पर मौन धारण
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy