SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिग्रह-परिमाणव्रत की प्रासंगिकता 337 कसिणं पिजो इमंलोयंपडिपुण्णंदलेज्जइक्कस्स। तेणाविसेणसंतुस्से, इइदुप्पूरएइमे आया।। ___- उत्तराध्ययनसूत्र, 8.16 यदि किसी व्यक्ति को समस्त लोक भी दे दिया जाय, तो उससे भी वह सन्तुष्ट नहीं हो सकता। इसलिए मानव को अपने लक्ष्य का सीमाकरण कर लेना चाहिए। आनन्द, कामदेव आदि श्रावकों ने भगवान महावीर के समक्ष परिग्रह-परिमाण व्रत अंगीकार कर स्वयं को प्रशम सुख के मार्ग पर प्रस्थित कर लिया था। उपासकदशांग सूत्र में आनन्द आदि श्रावकों ने हिरण्य-सुवर्ण, चौपाए पशु, क्षेत्र-वास्तु, शकटविधि, वाहनविधि आदि का परिमाण किया था। ऐसा करके उन्होंने अपने जीवन को अनेक चिन्ताओं से मुक्त बना लिया था। कोई यह समझे कि धन का परिग्रह हमारा रक्षक होता है, संकट के समय उसका उपयोग किया जा सकता है तो कहना होगा कि बचत किए हुए धन का संकट में उपयोग हो सकता है, किन्तु उसके प्रति ममत्व रखना कदापि उचित नहीं है। संसार में जो भी वस्तुएँ या धन-सम्पत्ति हमें प्राप्त हुई हैं उनके उपयोग का तो हमें अधिकार है, किन्तु उनके अनावश्यक संग्रह एवं परिग्रह का हमें अधिकार नहीं है। धनादि का अधिक संग्रह भी मनुष्य को मरण से नहीं बचा पाता है, इसलिए उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया - न वित्तेण ताणं लभे पमत्ते । - (उत्तराध्ययन, 4.5) अर्थात् प्रमत्त मनुष्य धन से त्राण प्राप्त नहीं कर सकता।। परिग्रह का अर्थ बाह्य भौतिक वस्तुओं का संग्रह मात्र नहीं है। परिग्रह का तात्पर्य है मूर्छा-मुच्छा परिग्गहो वुत्तो (दशवैकालिक, 6.21) मूर्छा का तात्पर्य ममत्व या आसक्ति भाव है। पर-वस्तु में अपना ममत्व या स्वामित्व समझना परिग्रह है। यह व्यक्ति को चारों ओर से जकड़ लेता है। इसलिए इसे परिग्रह कहा गया है। आगम में परिग्रह को दुःख एवं बन्धन का कारण प्रतिपादित करते हुए कहा गया है - किमाह बंधणं वीरे, किंवा जाणं तिउट्टइ ? चित्तमंतमचित्तं वा, परिगिझ किसामवि। अण्णंवाअणुजाणाइ, एवंदुक्खाणमुच्चइ।। - सूत्रकृताङ्ग 1.1.1-2
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy