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________________ 303 आचारांगसूत्र में अहिंसा हिंसा का अन्य प्रमुख कारण प्रमाद है। आत्म-स्वरूप के बोध की विस्मृति एवं असजगता प्रमाद है। असावधानी के कारण साधु-साध्वियों से भी हिंसा हो सकती है, फिर गृहस्थ की तो बात ही क्या? वह अज्ञानवश एवं असावधानी वश छोटे-बड़े स्तर पर हिंसा करता रहता है। हिंसा का एक कारण लोभ एवं परिग्रह की वृत्ति है । आचारांगसूत्र में कहा गया है कि अभीष्ट वस्तु आदि के संयोगों का अभिलाषी एवं अर्थ का लोभी मनुष्य दिन-रात परितप्त होता है तथा काल - अकाल में सदैव अर्थलाभ के लिए सन्नद्ध रहता है। वह चोरी एवं लूटपाट में भी संकोच नहीं करता तथा उसी में अपना चित्त लगाए रखता है और बार-बार हिंसा का सहारा लेता है। 23 लोभ एवं परिग्रह की वृत्ति के कारण मनुष्य अधिकाधिक वस्तुओं, धन-सम्पत्ति एवं भूसम्पदा पर अधिकार करना चाहता है, जिससे हिंसा एवं क्रूरता की भावना को प्रश्रय मिलता है। विगत शताब्दियों में हिटलर, मुसोलिनी आदि शासक हुए हों, या महमूद गजनवी जैसे अत्याचारी, सबके मन में लोभ एवं परिग्रह की वृत्ति का दबाव रहा। भारत में भी छोटी-छोटी रियासतें अपने भू-स्वामित्व का विस्तार करने के कारण परस्पर युद्ध करती रहीं। आज मनुष्य अधिकाधिक जमीनें खरीदकर बैंक बैलेंस बढ़ाकर अथवा दो नम्बर का पैसा बढ़ाकर दूसरों के साथ अन्याय करने में संलग्न है, जिससे हिंसा को बढ़ावा मिलता है। अतः हिंसा को रोकने के लिए परिग्रह एवं लोभवृत्ति पर भी विजय की आवश्यकता है। मनुष्य न केवल स्वयं के लिए, अपितु दूसरों के लिए भी हिंसा में प्रवृत्त होता है। वह परिवार का नाम लेकर न जाने कितना आरम्भ करता है। इसलिए आचारांग में कहा गया- दूसरे के लिए क्रूर कर्म करता हुआ अज्ञानी जीव दुःख प्राप्त करता है तथा उससे मूढ़ बनकर विपर्यास भाव को प्राप्त करता है। 24 प्राणि-रक्षा में समाया आत्महित आचारांगसूत्र में अन्य जीवों के साथ आत्मवद्भाव स्थापित करते हुए कहा गया- तुम भी वही हो जिसको तुम मारने योग्य मानते हो। " तुम्हारे में एवं उसमें कोई अन्तर नहीं है। वह भी चेतनाशील है तथा तुम भी चेतनाशील हो । हिंसा को रोकने की प्रेरणा करते हुए आचारांगसूत्र में कहा गया है कि यह
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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