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________________ नय एवं निक्षेप 30. वस्तु पर्यायवद् द्रव्यमिति धर्मिणोः । - प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7.9 31. क्षणमेकं सुखी विषयासक्तजीव इति धर्मधर्मिणोः । - प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7.10 32. अशेषविशेष्वौदासीन्यं भजमानः शुद्धद्रव्यं सन्मात्रमभिमन्यमानः परसंग्रहः। -प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7.15 33. द्रष्टव्य, प्रमाणनयतत्त्वालोक, 7.19-20 34. व्यवहारनयः किल पर्यायाश्रितत्वात्.. गाथा, 56 की टीका [.....। निश्चयनस्तु द्रव्याश्रितत्वात्. 35. णिच्छयववहारणया मूलमभेदा णयाण सव्वाणं । णिच्छयसाहणहेऊ दव्वयपज्जत्थिया मुणह । । 255 [......।। - समयसार - आलापपद्धति, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, पुष्प संख्या 36, गाथा 4 36. तत्र निश्चयनयोऽभेदविषयो व्यवहारो भेदविषयः । - आलापपद्धति, 216 37. समयसार, गाथा 272 पर आत्मख्याति टीका 38. तथाहि नैगमनयदर्शनानुसारिणौ नैयायिकवैशेषिकौ । संग्रहाभिप्रायप्रवृत्ताः सर्वेऽप्यद्वैतवादाः सांख्यदर्शनं च। व्यवहारनयानुपाति प्रायश्चार्वाकदर्शनम् । ऋजुसूत्राकूतप्रवृत्त बुद्धयस्ताथागताः शब्दादिनयावलम्बिनो वैयाकरणादयः। - अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, श्लोक 28 पर स्याद्वादमंजरी टीका, अगास, पृ. 248 39. द्रष्टव्य- प्रमाणनयतत्त्वालोक, सूत्र 4.15 से 4.21 40. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, स्याद्वादमंजरी, श्लोक 23 की टीका, पृ. 213-220
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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