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________________ नय एवं निक्षेप 243 है इसलिए विशुद्ध नैगम का उदाहरण है। जब वह कहता है कि मैं जम्बूद्वीप में रहता हूँ तो यह पूर्व अपेक्षा विशुद्धतर दृष्टिकोण है। इस प्रकार क्रमशः उत्तर देते हुए भारत वर्ष, दक्षिणार्द्ध भारतवर्ष, पाटलिपुत्र, देवदत्त के घर और गर्भगृह में रहने का उत्तर देता है तो इससे नैगम की विशुद्धतरता बढ़ती जाती है। प्रस्थक के दृष्टान्त से भी नैगम नय का निरूपण किया गया है। प्राचीनकाल में अनाज मापने के एक विशिष्ट पात्र को प्रस्थक कहा जाता था। कोई व्यक्ति जंगल में कुल्हाड़ी लेकर जा रहा था, उससे किसी ने पूछा- तुम जंगल में क्यों जा रहे हो? उसने उत्तर दिया- मैं प्रस्थक के लिए जा रहा हूँ। यह अविशुद्ध नैगम नय का उदाहरण है। जब वह लकड़ी काट रहा था तब किसी ने पूछा - तुम क्या काट रहे हो ? तब उस पुरुष ने उत्तर दिया मैं प्रस्थक काट रहा हूँ। यह विशुद्ध नैगम नय का उदाहरण है। क्योंकि पूर्वापेक्षा प्रस्थक बनाने की प्रक्रिया में निकट पहुँच रहा है। काष्ठ को तराशने, उकेरने तथा छीलने आदि क्रियाओं को देखकर पूछता है तो वह पुनः उत्तर देता है मैं प्रस्थक बना रहा हूँ। यह उत्तर विशुद्धतर नैगमनय का उदाहरण है। अनुयोग द्वार सूत्र में जो प्रस्थक का दृष्टान्त दिया गया है। उसके आधार पर आचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में नैगम नय का लक्षण देते हुए कहा है कि अनिष्पन्न अर्थ में संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नय नैगम नय है। जब तक कार्य पूर्ण न हो तब तक उसे अनिष्पन्न या अनभिनिवृत्त कहा जाता है। दिगम्बर परम्परा के आचार्य अकलंक विद्यानन्द, देवसेन, प्रभाचन्द्र आदि ने इस लक्षण का समर्थन किया है तथा अधिकांश आचार्यों ने प्रस्थ के संकल्प का उदाहरण लेकर इस लक्षण को समझाया है। ___ संकल्प को निगम कहा गया है तथा उस संकल्प से या प्रयोजन से होने वाली क्रियाओं को नैगमनय से समझा जाता है। नैगम नय का यह स्वरूप आज हमारे जीवन में पर्याप्त रूप से प्रयुक्त होता है। कोई विद्यार्थी कपड़े पहन रहा हो और उससे पूछा जाए कि तुम क्या कर रहे हो? तो वह उत्तर देता है कि मैं महाविद्यालय जा रहा हूँ। उसके कपड़े पहनने का उद्देश्य, संकल्प या प्रयोजन विद्यालय जाना है। इसलिए इस प्रक्रिया में कपड़े पहनना, जूते पहनना, वाहन चलाना अथवा वाहन में
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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