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________________ 236 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन का ज्ञान करता है। वह एक प्रकार से नयदृष्टि का ही प्रयोग है। वस्तुतः हम किसी एक वस्तु को एक साथ पूरी तरह नहीं जान पाते हैं। उसके कुछ अंशों या पर्यायों को जानकर ही हम समझते हैं कि हमने उस वस्तु का ज्ञान कर लिया है। उदाहरण के लिए कोई ताजमहल को देखकर उसके निर्माण में प्रयुक्त संगमरमर के बारे में जानता है, कोई उसकी कलाकृति के बारे में जानता है, कोई उसमें की गई मीनाकारी को जानता है, कोई उसमें बने गुम्बजों, खम्भों और आकारों के बारे में जानता है, तो कोई जानता है कि ताजमहल यमुना के किनारे पर स्थित है। एक व्यक्ति भी अलग-अलग क्षणों में एवंविध जानकारी कर सकता है। हम इनमें से किसी भी जानकारी को मिथ्या नहीं कह सकते । सभी जानकारियों का अपना महत्त्व है। विभिन्न दृष्टिकोणों या अपेक्षाओं से सभी जानकारियाँ सही हैं। इन दृष्टिकोणों को पर्याय प्रधान होने से जैनदर्शन में नय कहा जा सकता है। यहाँ यह आवश्यक है कि वस्तु में जो गुणधर्म या वैशिष्ट्य है, उसका सही सही ज्ञान होना चाहिए। वस्तु में जो गुणधर्म नहीं है, उसका ज्ञान मिथ्या कहा जाएगा। उदाहरण के लिए ताजमहल में सीमेण्ट एवं लोहे का प्रयोग नहीं हुआ, उसको भी जानने का दावा करें तो हमारा यह ज्ञान मिथ्या होगा। दूसरी बात यह है कि एक नय (View Point) से वस्तु के जिस गुण धर्म का ज्ञान होता है, उससे भिन्न गुणधों का उसके द्वारा अपलाप या निषेध नहीं किया जाता है। यही नय सिद्धान्त का वैशिष्ट्य है। दूसरे उदाहरण से समझने का प्रयास करें। कोई फोटोग्राफर किसी भवन का किसी एक कोण से फोटों खींचता है, फिर दूसरे कोण से फोटो खींचता है, इसी प्रकार वह विभिन्न दिशाओं एवं कोणों से अनेक फोटोग्राफ लेता है। वे सभी फोटो एक ही भवन के हैं, अतः यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई फोटो उस भवन का नहीं है। सबमें भेद है तथापि सभी फोटो अपनी जगह सही हैं। ये विभिन्न दृष्टिकोण भी नय सिद्धान्त को ही व्याख्यायित करते हैं। ____जानने के साथ अभिव्यक्ति भी विभिन्न दृष्टिकोणों से की जाती है। उन दृष्टिकोणों को भी नय कहा गया है। इसीलिए वक्ता जिस अभिप्राय से कथन करता है, उसका वह अभिप्राय-विशेष नय कहलाता है। व्यवहार में इस अभिप्राय- विशेष
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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