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________________ जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन प्रधानता से सामान्य तथा विशेष की प्रधानता से विशेष माने जाते हैं । (मनुष्य की अपेक्षा पुरुष विशेष है तथा पुरुष की अपेक्षा मनुष्य सामान्य है। इसी प्रकार ब्राह्मण की अपेक्षा पुरुष सामान्य है और पुरुष की अपेक्षा ब्राह्मण विशेष है । ) 42 बौद्धदार्शनिकों ने जो प्रत्यक्ष को कल्पनापोढ कहा है" वह अर्थावग्रह प्रत्यक्ष से कथञ्चिद् भिन्न है। बौद्ध प्रमाणशास्त्र में प्रत्यक्ष का विषय स्वलक्षण निरूपित किया गया है, जबकि जैनदर्शन में अर्थावग्रह सामान्यग्राही माना गया है। श्वेताम्बर आचार्य जिनभद्र ने उस सामान्य ग्रहण को स्वरूप से अनिर्देश्य एवं नामादि की कल्पना से रहित कहा है। वह बौद्ध प्रणीत कल्पनापोढ प्रत्यक्ष के सदृश प्रतीत होता है, किन्तु बौद्ध दर्शन में कल्पना के स्वरूप का विवेचन करते हुए आचार्य धर्मकीर्ति ने कहा है- अभिलाप के संसर्ग योग्य प्रतिभास की प्रतीति कल्पना है । 12 किन्तु कल्पना का यह स्वरूप जैनों द्वारा स्वीकृत नहीं है । वे उस प्रकार के निर्विकल्पक प्रत्यक्ष का अनेक बार खण्डन करते हैं । अर्थावग्रह में स्वरूप एवं नामादि की योजना नहीं होती है, किन्तु नाम आदि की योजना के संसर्ग की योग्यता तो होती ही है । स्वरूप, नाम आदि की योजना की योग्यता का परिहार जैन दार्शनिक अर्थावग्रह में प्रतिपादित नहीं करते हैं । अतः बौद्ध प्रणीत निर्विकल्पक प्रत्यक्ष से जैनों का अर्थावग्रह भिन्न है । 226 अर्थावग्रह में ज्ञानान्तर से निरपेक्षता, इदन्तयाप्रतिभासत्व (साक्षात्कारित्व), परोक्षप्रमाण की अपेक्षा अधिक प्रकाशन रूप वैशद्य है ही, इसलिए यह प्रत्यक्ष प्रमाण ही है । विशेषतः अवसाय रूप व्यवसाय तो यद्यपि अवायज्ञान में प्राप्त होता है, किन्तु अवग्रह में भी उसका अंश है ही, अतः अर्थावग्रह ज्ञान को प्रमाण मानने में कोई बाधा नहीं है । I सन्दर्भ: 1. ( अ ) हिताहितप्राप्तिपरिहारसमर्थं हि प्रमाणं ततो ज्ञानमेव तत् । - परीक्षामुख, 1.2 (आ) सन्निकर्षादिरज्ञानस्य प्रामाण्यमनुपपन्नमर्थान्तरवत् । - लघीयस्त्रवृत्ति 1.3 - 2. प्रमाणपरीक्षा, वीरसेवामन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, पृ. 5 3. सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम् । तत्र निर्णयः संशयानध्यवसायाविकल्पत्वरहितं ज्ञानम् । -प्रमाणमीमांसा,1.1.2
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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